विभिन्न भारतीय भाषाओं में परस्पर आदान प्रदान की संभावनाएँ
Given to Dr Manohar for Shabdsrishti
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साहित्य-निर्माण और साहित्य का पठन-चिंतन-मनन ये विकास के अभिन्न और मूलभूत अंग रहे हैं। जब लेखन-विद्याका अविष्कार नही हुआ था तब भी साहित्य निर्माण हो रहा था, जिसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण ऋग्वेद के रूप में मौजूद है। यह ऋग्वेद विश्वका सबसे प्राचीन उपलब्ध साहित्य है। भारतियोंके लिये यह गौरव की बात है कि यह अतिप्राचीन साहित्यकृती जो समाज-दर्शन और सामाजिक आचरण से भी संबंधित है, यह हम भारतवासियोंकी धरोहर है। इसमें प्रयुक्त भाषा जिसे संस्कृत या देववाणी कहा जाता है, वही तमाम भारतीय भाषाओंकी जननी है, यहाँ तक कि सिंहली, नेपाली, थाई, बर्मीज और इंडोनेशियाकी भाषाएँ भी संस्कृतसे जुडी हुई हैं। ऊर्दू का वाक्य-रचना–व्याकरण भी हिंदी जैसा ही है।
विश्वभरका साहित्य हमारे लिये खुली खिडकियोंसे आनेवाली मंद सुगंधित वायुलहरियोंकी तरह है लेकिन खास तौर पर भारतीय प्रकट होनेवाले साहित्य में हमारी अतिप्राचीन सांस्कृतिक धरोहर हमें उस साहित्यसे तुरंत एक अपनेपन का बोध कराती हे. जो कि हमारी साहित्यिक एकात्मता के लिये एक अटूट धागे के समान है। इसी कारण भारतीप भाषाओंके साहित्य के आदान प्रदान को एक विशेष महत्व और स्वीकार्यता है। मराठीकी किसी साहित्य-कृति में यदि महाभारत के यक्षप्रश्नों का उल्लेख आता हे तो उसे बांगला या कन्नड में अनूदित करते हुए यह नही सोचना पडेगा कि पाठकों को अलग से य़क्षप्रश्न की पार्श्वभूमि बतानी पडेगी या नही. यह हमारी भाषाओंकी एक बडी संपत्ती भी है व विभिन्न भाषाओंके साहित्यिक आदान–प्रदान और अनुवाद के लिये एक सशक्त मुद्दा भी। .............
सोमवार, 21 जून 2010
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