शनिवार, 24 दिसंबर 2011
बुधवार, 14 दिसंबर 2011
इनस्क्रिप्ट के माध्यमसे वंचित विकास
इनस्क्रिप्ट के माध्यमसे वंचित विकास --प्रेझेंटेशन के लिये यहाँ टिकटिकाएँ
लेख और प्रेझेंटेशन
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लेख
इस देश में दो देश हैं
एक का नाम है इंडिया । करीब 25 प्रतिशत लोग इंडिया के निवासी हैं जो
विद्याविभूषित, अंग्रेजीदाँ, धनिक हैं। इनका संगणकसे पहला परिचय अंग्रेजी
में होता है और प्रायः वही कायम रहता है, क्योंकि आज संगणकपर हिंदी भी अंग्रेजीके
माध्यमसे लिखी जाती है। इन्हें कोई अन्तर
नही पडता कि बाकी कैसे हैं, या उनकी संगणकतक पहुँच कैसे करवाई जाये। भारत
सरकार भी इसी रोमन फोनेटिक को बढावा देती है।
दूसरे देशका शायद कोई नाम नही है, इसमें करीब 75 प्रतिशत लोग हैं। वे
अंग्रेजी अत्यल्प या नगण्य रूप में जानते हैं। उनमें से शायद दस प्रतिशत
को हिंदी टाइपराइटर पद्धतिसे टाइपिंग आता है अतः उनकी संगणक तक पहुँच है।
पर वह हिंदी महाजालपर नही टिक सकती। अतः उन दस प्रतिशतकी वैश्विक पहचान
शून्य रहेगी। बाकी 65 प्रतिशतको संगणक क्षेत्रमें प्रवेश वर्जित है।
उन 75 प्रतिशत के लिये हमारा फैसला क्या है?
संगणक उनके पिछडने का साधन बने ?
या विकास का?
परन्तु ध्यान रहे कि उनके विकासका माध्यम बनने के लिये संगणक को हिंदी की
ओर उन्मुख करना पडेगा।
क्या हममें वह क्षमता व दृढ निश्चय है?
अगर है तो आइये उन्हें इनस्क्रिप्ट के माध्यमसे संगणकपर हिंदीमें लिखना
सिखायें और उनके लिये दुनियाभर के ज्ञानके किवाड खोल दें। साथही संगणकको
उनकी रोजीरोटीका साधन बनने दें।
(आगे है)
like by --
Sanjeev Dubey, स्वप्निल कल्याणकर, Pk Sharma and 7 others like this.
Ashok Patwardhan, Sanjeev Dubey, Vijay Prabhakar Nagarkar and 20 others like this.
Shrinivas Gitte
Santosh Bhogle
Chhaya Thorat
Devendra Borse
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एक का नाम है इंडिया । करीब 25 प्रतिशत लोग इंडिया के निवासी हैं जो
विद्याविभूषित, अंग्रेजीदाँ, धनिक हैं। इनका संगणकसे पहला परिचय अंग्रेजी
में होता है और प्रायः वही कायम रहता है, क्योंकि आज संगणकपर हिंदी भी अंग्रेजीके
माध्यमसे लिखी जाती है। इन्हें कोई अन्तर
नही पडता कि बाकी कैसे हैं, या उनकी संगणकतक पहुँच कैसे करवाई जाये। भारत
सरकार भी इसी रोमन फोनेटिक को बढावा देती है।
दूसरे देशका शायद कोई नाम नही है, इसमें करीब 75 प्रतिशत लोग हैं। वे
अंग्रेजी अत्यल्प या नगण्य रूप में जानते हैं। उनमें से शायद दस प्रतिशत
को हिंदी टाइपराइटर पद्धतिसे टाइपिंग आता है अतः उनकी संगणक तक पहुँच है।
पर वह हिंदी महाजालपर नही टिक सकती। अतः उन दस प्रतिशतकी वैश्विक पहचान
शून्य रहेगी। बाकी 65 प्रतिशतको संगणक क्षेत्रमें प्रवेश वर्जित है।
उन 75 प्रतिशत के लिये हमारा फैसला क्या है?
संगणक उनके पिछडने का साधन बने ?
या विकास का?
परन्तु ध्यान रहे कि उनके विकासका माध्यम बनने के लिये संगणक को हिंदी की
ओर उन्मुख करना पडेगा।
क्या हममें वह क्षमता व दृढ निश्चय है?
अगर है तो आइये उन्हें इनस्क्रिप्ट के माध्यमसे संगणकपर हिंदीमें लिखना
सिखायें और उनके लिये दुनियाभर के ज्ञानके किवाड खोल दें। साथही संगणकको
उनकी रोजीरोटीका साधन बनने दें।
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Devendra Borse
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