शिक्षा पर न्यायालयों के निर्णय एवं क्रियान्वयन पर संगोष्ठी
देश के उच्च एवं उच्चतम न्यायालयों के निर्णय शिक्षा जगत को अनुप्रमाणित करने वाले हैं। उन ऐतिहासिक निर्णयों पर केन्द्र तथा राज्यों की सरकारों ने कितना एवं किस प्रकार क्रियान्वयन किया है इस विषय को लेकर अधिवक्तता परिषद और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वाधान में कान्स्टीट्युषन क्लब नई दिल्ली में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव श्री अतुल कोठारी ने संगोष्ठी में कहा कि आज देष में षिक्षा का स्तर क्यों गिर रहा है, ऐसी संगोष्ठियों की आवष्यकता क्यों पड़ती है, शिक्षा के गिरते हुए स्तर को कैसे उठाया जाए, उसके लिए न्यायालयों में मुकदमें किए गए। उन पर निर्णय हुए लेकिन उन निर्णयों का अनुपालन सरकार नहीं कर रही है, बच्चों को शिक्षा के माध्यम से एक प्रकार का विष पिलाया जा रहा है, ऐसे में षिक्षा बचाओ आन्दोलन जैसे जागरण की आवष्यकता पड़ी। 2004 से 2007 तक लगातार एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तकों से विवादित अंष हटाने के लिए सरकार के समक्ष आंदोलन किए गए लेकिन सरकार पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उस समय न्यायालय का सहारा लेना पड़ा दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की। उसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने एन.सी.ई.आर.टी. को आदेष दिया कि सभी 75 विवादित पैरे पाठ्य पुस्तकों में से डिलीट कर दिए जाएं।
डाॅ. मोनिका अरोड़ा ने अपने संबोधन में कहा साढ़े 22 नम्बर का अंग्रेजी का पेपर यू.पी.एस.सी. ने आई.ए.एस. परीक्षा के लिए अनिवार्य कर दिया है। जो उत्तर प्रदेष, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेष, राजस्थान जैसे हिन्दी भाषी प्रदेषों के विद्यार्थी है और जो काॅन्वेंट स्कूलों से षिक्षित नहीं है उनके साथ यह अन्याय है। वो सीधे-सीधे साढ़े 22 अंकों के लिए काॅन्वेंट षिक्षित छात्रों से प्रतियोगिता करेंगे। आई.ए.एस की परीक्षा जहां एक-एक नंबर से परीक्षार्थी असफल हो जाते हैं वहीं साढ़े 22 नंबर का लाभ काॅन्वेंट विद्यालयों के छात्रों को दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि रामायण के विषय में दिल्ली विष्वविद्यालय में गलत तथ्य दिए गए, दो वर्ष पहले पढ़ाया जा रहा था कि सीता रावण की बेटी है, रावण ने सेब खाया जिससे उसका गर्भ ढहरा, उससे सीता का जन्म हुआ, ऐसे गलत तथ्य अधिवक्ता परिषद तथा षिक्षा संस्कृति न्यास के प्रयास स न्यायालय के आदेष से हटवाए गए। दिल्ली के विद्यालयों में षिक्षकों की पात्रता के लिए टी.ई.टी. परीक्षा में दो भाषाओं की परीक्षा पास करना अनिवार्य होता है। जिसमें अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, तिब्बती, नेपाली आदि सभी भाषाएं विकल्प के रूप में थी, सब भाषाएं थीं लेकिन संस्कृत नहीं थी। एक साल पहले जून में इसके लिए भी हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई तब हाई कोर्ट ने भी कहा कि यह हमारा दुर्भाग्य है कि हिन्दुस्तान में यह कहना पड़ रहा कि कृपया हमें संस्कृत दे दो। वहां भी जीत हासिल हुई और संस्कृत को भी इस परीक्षा में एक विकल्प के रूप में षामिल किया गया। पिछले दिनों घटित सुभाष पार्क के मुद्दे पर बताया कि उच्च न्यायालय में अधिवक्ता परिषद ने इस अवैध निर्माण के विरुद्ध दायर किए गए केस पर अभी 30 जुलाई को चीफ जस्टिस से यह आर्डर मिला है कि यह जो निर्माण है वह पूरी तरह अवैध है, पब्लिक लैंड के ऊपर है, यह नियम के विरुद्ध है और इसे तोड़ा जाए। श्रीमती अरोड़ा ने बताया कि पिछले दो-तीन दिनों के न्यूज पेपर देख कर मन बहुत व्याकुल हुआ है कि जे.एन.यू. में बीफ एण्ड पोर्क फैस्टीवल होने जा रहा है 28 सितंबर को, अब बीफ एण्ड पोर्क फेस्टिवल वो भी हिन्दुस्तान में, आयोजक कह रहे हैं कि यह हम हिन्दुस्तान में कर रहे हैं यहां गोहत्या पर पाबन्दी नहीं है, लेकिन हमने कहा दिल्ली में तो है। दिल्ली में नियम है गोमांस पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध है, इसके लिए 2 साल से लेकर 5 साल तक की सजा है। जे.एन.यू. के लोग कह रहे हैं यहां यह एप्लीकेबल नहीं है, इसको रोकने एक लिए तत्काल हमारे कुछ लोगों ने एक नोट बनाकर फेसबुक पर पोस्ट किया ताकि वह शोषल नेटवर्किंग साइट्स पर जा सके, फिर जेएनयू के लोगों से बात हुई और तत्काल पुलिस कम्पलेन फाइल हुई सराय रोहिल्ला थाने में और वसंत विहार थाने में। उन्होंने संगोष्ठी में बताया कि हम सभी को अपनी ओर से छोटे-छोटे पर्यास करने चाहिए।
एन.सी.ई.आर.टी. के पूर्व निदेषक डाॅ. जे.एस. राजपूत ने संगोष्ठी में अपने उदबोधन में कहा कि संस्कृत हमारे देष को जोड़ती है, यह हमारी नई पीढ़ी को पुरानी पीढि़यों से जोड़कर रखने का पुल का कार्य करती है। वैदिक गणित के महत्व पर बताते हुए उन्होंने कहा कि यह प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में बहुत उपयोगी हो सकती है, शिक्षकों को इसे एक विकल्प के रूप में शामिल करना चाहिए।
षिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के अध्यक्ष श्री दीनानाथ बतरा जी ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि आज बच्चों में मूल्यों का बहुत अभाव नजर आ रहा है, माता पिता बच्चों को समय नहीं दे पाते और विद्यालयों में षिक्षा में नैतिक षिक्षा दिखाई नहीं पड़ती। षिक्षा संस्कृति न्यास का यह पर्यास रहा है कि बच्चों की आरम्भिक षिक्षा में नैतिक षिक्षा, जीवन मूल्यों के बारे जानकारी मिले। आज हिन्दी की पुस्तकों में अंग्रेजी तथा फारसी के शब्द भर कर हिन्दी को समाप्त किया जा रहा है, उन्होंने बताया कि हिन्दी की एक प्राथमिक कक्षा की पाठ्य पुस्तक में तो पूरी एक कविता अंग्रेजी में दी गई है। इसी तरह हिन्दी की पुस्तकों में उर्दू की शायरी सम्मिलत की जाने लगी है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष तथा कर्नाटक उच्च न्यायालय के सेवानितृत कार्यकारी मुख्य न्यायाधीष डाॅ. जे.एस. भारूका ने कहा कि हमारी पाठ्य पुस्तकें क्यों लिखी गई, किसने लिखीं, किस उद्देष्य से लिखी गई ये एक चर्चा का विषय है, गहन चर्चा का विषय है। डाॅ. भारूका ने बताया कि मुझे नहीं मालूम आज की पाठ्य पुस्तकों में क्या लिखा गया है क्योंकि मेरे जमाने में जो पाठ्य पुस्तकें थीं उन पाठ्य पुस्तकों में यह नहीं लिखा होता था। ये आजादी के कुछ साल बाद की पुस्तकों में लिखा गया। इसका क्या निदान है क्या हम देखते ही रहेंगे अपने शास्त्रों के अपमान को, अपनी संस्कृति के अपमान को, हम लड़ें तो किस-किस से, किस माध्यम से, हम देखते हैं कि बड़े-बडे़ दिग्गज आंदोलन करते हैं और थक के बैठ जाते हैं, गांव लौट जाते हैं। आज हममें ताकत कहां से आएगी, हम कितने दिन केवल न्यायालय का सहारा लेकर लड़ते रहेंगे। मुझे खुषी है कि न्यायालय के माध्यम से हमारी षिक्षा संस्कृति को कुछ तो राहत मिली है। कार्यक्रम के अंत में अधिवक्ता परिषद के अध्यक्ष श्री भगवान स्वरूप शुक्ल नें इस गंभीर विषय पर कार्यक्रम में आए शिक्षाविदों, अधिवक्ताओं तथा समाज के प्रबुद्ध विद्वानों का आयोजकों की ओर से धन्यवाद दिया।
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