संगणक और हिन्दी -- जरूरत है मूलतत्व तक जाने की
हिंदी - संगणक
हिंदी और साथ ही सारी भारतीय भाषाएँ आज एक गहरे संकट में पडी दीखती हैं। वह संकट है, इन भाषाओं का बेमानी हो जाना। अंग्रेजी का व्यवहार और चलन पूरी दुनिया में इस कदर बढ़ा है कि यह चिंता अन्य युरोपीय भाषाओं पर भी लागू होती है। लेकिन उनके समाधान के तरीके कुछ और होंगे जबकि हमारे तरीके कुछ और खोजने पडेंगे, क्योंकि हमारा प्रश्न भाषा के साथ साथ लिपी और वर्णमाला का भी है। मसलन ग्रीक और रशियन भाषाओं की लिपी अलग है लेकिंन उनकी वर्णमाला में भी उतने ही अक्षर हैं जितने अंग्रेजी में। उनकी भाषा में व्यंजन और स्वरों को एक साथ जोड़ने की कोई रीति या नियम नहीं है। वर्णमाला का हिसाब करें तो पूरे संसार में चार तरह की मुख्य वर्णमालाएँ हैं - संस्कृत, अरबी, चीनी और लैटिन (जिसमें ग्रीक, रोमन आदि शामिल हैं।) सवाल है इन्हें संगणक पर उपयोगी बनाने का।
पहले हम देखें कि हमारी भाषाओं के बलस्थान क्या हैं। दुनिया की आबादी करीब छः अरब है जिसमें करीब तीन-चार अरब जनता की या तो भाषा अंग्रेजी है या उन्हें अंग्रेजी का थोड़ा-अधिक ज्ञान है। अंग्रेजी भाषाई लोगों के लिये युरोप की कम से कम दो अन्य भाषाएँ जानना अनिवार्य माना जाता है जिसमें फ्रेंच, जर्मन, स्पॅनिश, इटालवी, रशियन इत्यादि भाषाएँ आती हैं।
भारत की जनसंख्या एक अरब अर्थात् सौ करोड़ है जिसमें - साठ करोड़ लोग हिंदी बोल या समझ लेते हैं। इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि सारी भारतीय भाषाओं में अक्षर और अक्षर समूहों से शब्द बनाने का तरीका एक ही है। अर्थात् हमारी मूल लिपी एक ही हे और उसी के विभिन्न रूप या विभिन्न सजावट से अलग अलग भाषाओं की लिपी बनी है। संगणक पर काम करने के लिए यह बडा ही उपयोगी हो जाता है क्योंकि केवल फॉन्ट बदल देने से ही हम हिंदी, बंगाली, पंजाबी और जो भी अन्य लिपियाँ हैं - उन्हें अपने सम्मुख लाकर उपयोग कर सकते हैं।
हमारा दूसरा प्रबल पक्ष यह है कि वाक्य रचना के व्याकरण के नियम सभी भाषाओं के लिए प्रायः एक जैसे हैं। मैं रोटी खाती हूँ को अंग्रेजी में कहना है तो पहले उनकी वाक्य रचना का भेद सीखना पड़ेगा। आप नहीं कह सकते आई रोटी ईट। लेकिन बंगाली में कहने के लिये केवल शब्दशः भाषांतर कर देने से भी काम चल जाएगा। अतः संगणक के लिये यह भी आसानी है कि यदि उसके पास शब्द कोष है तो वह खुद ही एक भारतीय भाषा से दूसरी भाषा में भाषान्तर कर लेगा। आपको बस थोड़ी सी मेहनत करनी होगी, खास खास जगहों पर।
इसका अर्थ यह हुआ कि यदि हम संगणक तकनीक को अपनी भाषा के हिसाब से विकसित करते हैं तो उसके कई फायदे हैं। दूसरी ओर संगणक पर नई-नई तकनीकों का और सुविधाओं का विकास इतनी तेजी से हो रहा है कि यदि हमारी भाषा के हिसाब से हम उन सुविधाओं को नहीं ढाल पाये तो हमारी भाषाएँ पीछे छूट जाएँगी। पिछले पाँच वर्षों में यह संकट तेजी से गहराया है और इसकी तेजी बढ़ने वाली है।
इंटरनेट और खास कर ई-मेल की सुविधाओं को देखकर अब यह डर लगने लगा है कि भविष्य में यदि सुदूर देशवासियों के साथ घरेलू पत्रव्यवहार भी अंग्रेजी में करना पडा, तो फिर भारतीय भाषाएँ कहाँ रहेंगी। आने वाले पांच वर्षों के पहले ही हमारे देश के सारे प्रमुख शहर इंटरनेट पर सारी दुनियाँ के साथ जुडे होंगे। दुनियाँ से जुड़े होने का मतलब होता है दुनियाँ के कोने कोने में जो अपने परिचित, अपने आत्मीय फैले हुए हैं, उनसे जुडे रहना। आज की तारीख में तो इस जुड़ाव के लिए आज तो अंग्रेजी भाषा ही अनिवार्य है। यदि इस स्थिती में अंतर नहीं आया और भारतीय लिपियाँ इस जुडाव के लायक नहीं रह पाईं तो उनका बेमानी हो जाना अटल है। परन्तु वे इस लायक बनी रहेंगी या नहीं यह सवाल आज भाषाविदों की झोली में नहीं बल्कि संगणक शास्त्रियों की झोली में जा पड़ा है।
यह भी देखें कि हमारे देश में संगणक शास्त्र का फैलाव कैसे हुआ।
पहले संगणकों का उपयोग हमारे देश के कतिपय वैज्ञानिक संस्थाओं में ही हुआ करता था। सन् १९८० के बाद हर जिले में एन.आई.सी. के केन्द्र खुले और विभिन्न कार्यालयों में संगणकों का प्रसार सन् १९९० के बाद तेजी से बढ़ा। सन् १९८० से सन् २००० के बीच में संगणकों की दुनिया मे काफी नए-नए अविष्कार और एप्लीकेशन हुए। नए सॉफ्टवेयर, साथ ही पुराने कई सॉफ्टवेयर को एकत्रित प्रणाली (Operating System) में एक साथ लाने की व्यवस्था हुई। उदाहरण के लिए - word, excel, power point, paint आदि microsoft office system के कई काम एक ही तरीके से किए जाते हैं। नए एप्लीकेशन में ई-मेल और उसके बाद मोबाईल फोन से ई-मेल और ई-मेल से मोबाइल फोन पर sharing जैसी सुविधाएँ सामने आ रहीं हैं। इसी तरह कई क्रांतिकारी बातें आने वाले वर्षों में भी संगणकों पर होती रहेंगीं।
संगणक आधारित शोध कार्यों के लिए मानवी संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत सी-डैक का गठन हुआ। 'सी-डेक' ने संगणक के एप्लीकेशन के अनुरूप देवनागिरी लिपी पर आधारित सॉफ्टवेयर बनाने के लिए प्रयास किया, किन्तु संगणक की मुख्य प्रणाली को हाथ नहीं लगाया। यहाँ रुककर हमें पहले कुछ मौलिक सिद्धांत समझने पड़ेंगे
अंग्रेजी में अंग्रेजी के अक्षर, अंक एवं सामान्य संकेत चिन्हों को 1 एवं ० जैसे सांकेतिक विद्युत् चिन्हों में बदलकर कम्प्यूटर को समझाया जा सकता है। इस पद्धति को ऋच्क्क्ष्क्ष् क्दृड्डत्दढ़ कहते हैं। इसी प्रकार की कोडिंग देवनागिरी अक्षरों के लिए करने की आवश्यकता है जो नहीं की गई है। हालाँकि ऐसी क्ष्च्क्क्ष्क्ष् की शुरूआत तो की गई लेकिन इसके आगे प्रयोग नहीं किये गए।
इसी वजह से हिन्दी में किसी भी सॉफ्टवेयर को मूलरूप से बनाने में दिक्कतें आती हैं। अंग्रेजी के नए सॉफ्टवेयर हिन्दी में ढालने के लिए भी अतिरिक्त समय और पैसा व्यर्थ होता है। हर नये आविष्कार या software को हिन्दी में उतारने के लिए ४-५ वर्ष लग जाते हैं इसलिए आवश्यक है कि संगणकों पर हिन्दी को लाने के लिए ऐसा मूलभूत काम हो ताकि संगणक का bios, processing chip, पर लगी चिप के assembly language के प्रोग्राम भी हिन्दी के माध्यम से किए जाए तभी संगणकों पर हिन्दी भाषा को आसानी से क्रियान्वित किया जा सकता है।
चूँकि कईयों का संगणक-ज्ञान सीमित है अत कुछ मौलिक सिद्धांत पहले समझने पडेंगे।
१) संगणक का प्रयोग छ प्रकार से होता है - भाषा - व्यवहार
गणित के पेंच सुलझाना
तथ्यों की छानबीन - spread sheet, graphs, आकृतियाँ
दो और तीन आयाम वाले मॉडेल तथा सिम्यूलेशन प्रशिक्षण
२) संगणक प्रणाली को समझने का एक सरल तरीका है। याद करें कि भाषा प्रणाली का विकास कैसे हुआ - वही प्रक्रिया संगणक में भी होती है।
जब भाषा का विकास आरंभ हुआ तो पहले संकेत और शारीरिक हावभाव, फिर ध्वनियाँ, फिर चित्राकृतियाँ और फिर लिपी बनी। फिर शब्द-भंडार बना। फिर व्याकरण के नियम बने, उनके अंतर्गत वाक्य रचना बनी। फिर विभिन्न विचार, सिद्धांत इन वाक्यों के माध्यम से व्यक्त होने लगे। फिर छंदबद्धता आई, सूत्र बने और गणित बना। यों भाषा का विकास हुआ।
संगणक को भी अपनी एक लिपी, एक शब्दभंडार एक व्याकरण और एक छंद-नियमों की आवश्यक होती है। हमें यदि संगणक के माध्यम से ज्ञान का आदान-प्रदान करना है तो हर सीढी पर मेल बैठाना होगा और एक man to machine methodology की जरूरत होगी।
३) संगणक के साथ ज्ञान का सारा आदान-प्रदान अंततः संगणक की लिपी में ही करना पड़ेगा अर्थात् हाँ और ना। इसे 1 और ० के रुप में भी लिखा जाता है। हमारी लिपी में कई अक्षर हैं। इनका मिलान करने के लिये एक coding चाहिए। अंग्रेजी में मिलान का जो code बना उसका नाम है unicode। हिंदी के लिये अभी ऐसा code नहीं बना। मिलान का तरीका यूँ है कि 1 या ० के १६ संकेतों की एक पंक्ति बनाते हैं (chain) जिससे कुल २५६ तरीके की पंक्तियाँ बन सकती हैं। इन्हींसे हमारी लिपी के सारे अक्षर बन सकते हैं।
इसके अलावा संगणक को आरंभ करते समय हर बार कुछ शुरुआती काम पूरे करने पड़ते हैं। उन्हें रोज-रोज न बताना पड़े इसके लिये bios, या machine code एवं assembly language बनाने पड़ते हैं ताकि संगणक अपने आपको काम के लिये तैयार कर सके।
इस प्रकार संगणक और हमारी भाषा के बीच कई सीढ़ीयाँ हैं। संगणक के छोर से देखें तो हर सीढ़ी पर मानवी भाषा का प्रमाण बढ़ जाता है। अन्तिम सीढ़ी में हम वहाँ पहुँचते हैं जहाँ हम केवल अपनी भाषा में ही काम करते हैं और संगणक उसे उन सारी सीढ़ीयों से उतारते हुए अपनी भाषा में ढ़ाल लेका है। लेकिन इन सीढ़ीयों की रचाना, उनका व्यवहार, वहाँ होने वाले काम इत्यादि हमारे ही वैज्ञानिकों ने पहले से किये होते हैं और उनकी भाषा रही है अंग्रेजी।
इसी लिये यदि हम संगणक पर व्यवहार लिखना चाहें, तो अंतिम सीढ़ी पर आकर हमें एक सॉफ्टवेअर थमा दिया जाता है जो देवनागरी लिपी में है लेकिन उससे एक सीढ़ी पीछे के काम भी हमें करने हों, जैसे की संगणक से कहना हो कि हम उस सॉफ्टवेअर में काम करना चाहते हैं, तो यह बात भी संगणक से अंग्रेजी में कहनी पड़ेगी।
01111001, 01010001, 10100010,
एक सांकेतिक चित्र साथ में बना है। हर डॉट मानवी लिपी का correspomdence दर्शाता है। तो अभी तक C-Dac केवल इस हद तक कामयाब हुई है कि अंतिम छोर पर आकर हिंदी भाषा -व्यवहार के लिये हिंदी लिपी का प्रयोग हो। परंतु जहाँ संगणक के मूल काम आरंभ होते हैं, उन व्यवहारों में हिंदी की पहुँच जब तक नहीं होती तब तक हम संगणकीय सुविधाएँ हिंदी भाषिकों को नहीं दे सकते।
व्यावहारिक
एक बहुत बड़ी व्यावहारिक समस्या यह है कि संगणक के मौलिक काम हिंदी भाषा के माध्यम से न होने के कारण आज जब संगणक हिंदी लिपी को पढ़ता है, तो केवल चित्रों के रुप में। अत यदि इन चित्रों को codify न किया जाय और एक computer दूसरे computer की standardisation न हो, तो एक संगणक पर किया गया काम दूसरे संगणक के लिये बेकार हो जाता है। जिस प्रकार अंग्रेजी में किसी computer पर किये गये काम को machine language में लाया जा सकता है, वैसी सुविधा हिंदी में नहीं है। इससे नतीजा यह है कि संगणक की सुविधा हमारे हिंदी गद्य-लेखन के काम में भी केवल १० या २० प्रतिशत ही उपयोगी हो सकती है और बड़े परिमाण में हम हिंदी व्यवहारों को संगणक के पूरे utilisation से वंचित रखते हैं।
सभी सरकारी कार्यालयों में हिंदी में कम्प्यूटर पर कार्य करने के लिए मुख्यतः लीप ऑफिस सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है। लीप ऑफिस में मुख्यतः तीन तरह के ख़्ड्ढन््रडदृठ्ठद्धड्ड - क्ष्दद्मड़द्धत्द्रद्य,
हिंदी टाईपराईटर तथा घ्ण्दृदड्ढद्यत्ड़ प्रयोग में लाए जाते हैं जिनमें से क्ष्दद्मड़द्धत्द्रद्य ख़्ड्ढन््रडदृठ्ठद्धड्ड को सीखना अत्यंत आसान होता है, और यह दो दिनों में सिखा जा सकता है परन्तु सी-डैक ने कभी भी इसका प्रचार नहीं किया है, और यह बात अपनी वेब-साइट में भी उजागर नहीं की है।
लीप ऑफ़िस में कार्य करने में आने वाली कुछ कठिनाइयाँ निम्नलिखित है -
१) लीप ऑफ़िस की क़ीमत लगभग १२,५००/- रुपये है, जो कि एक सामान्य आदमी के लिए काफ़ी ज़्यादा है। सामान्य सरकारी कार्यलयों के अलावा लाखों लोग हर साल कम्प्यूटर खरीदतें है, लीप ऑफ़िस एक हिंदी का मूल वर्ड प्रोसेसर (word processor) है, जो कि कंप्यूटर के साथ प्री-इनसटालड (pre-installed) आना चाहिए जैसे कि अंग्रजी का वर्ड पैड आता है, तभी हिंदी का प्रचार एवं प्रसार संपूर्ण रूप से हो सकेगा।
२) लीप ऑफ़िस के फौंट का सीधे एम एस वर्ड (MS word) या एम एस एक्सेल (MS excel) और एम एस पावर पाइंट (MS power point) में प्रयोग संभव नहीं है। इसको करने के लिए सी डैक के दूसरे साफ्टवेयर आई एस एम ऑफ़िस (ISM office) का उपयोग करना पड़ता है जिसकी क़ीमत ४०००/-रुपये के लगभग है।
३) 'लीप ऑफ़िस' में हिंदी वर्णमाला के अनुसार sorting नहीं हो पाती है। लीप ऑफ़िस से जब हम एम एस एक्सेल (MS excel) कंप्यूटर पैकेज का प्रयोग करते हुए डाटा की key-in करते है तो डाटा हिंदी वर्णमाला के अनुसार sort नहीं होता है।
४) लीप ऑफ़िस में 'वेब-पेज' बनाने पर शब्द टूट जाते हैं।
५) 'लीप-ऑफ़िस' से जब हम ई-मेल भेजते हैं, तो ई-मेल पाने वाले को संदेश अँग्रेजी junk के रूप में मिलता है, उसे पढ़ने से पहले पाने वाले को 'फौंट'(font) 'डाउन लोड' करना पड़ता है। हालाँकि सी डैक (C-Dac) ने अपनी वेब साइट पर वह फौंट दिया है, फिर भी ई-मेल पढ़ने वाले को निम्नलिखित कठिनाइयाँ होती है -
क) फौंट डाउनलोड कहाँ से करना है उसे यह पता नहीं होता है।
ख) फौंट डाउन लोड करने में समय नष्ट होता है।
ग) वेबसाइट का पता ढूँढ़ना पड़ता है। हालाँकि लीप ऑफ़िस से भेजी गई ई-मेल के साथ एक संदेश स्वतः जुड़ जाता है जो कि फौंट डाउन लोड करने की .जरूरत बताता है, लेकिन वह संदेश स्पष्ट रूप से वेब साइट का पता एवं फौंट डाउन लोड करने का तरीक़ा नहीं बताता है।
घ) सामान्यतः लोगों को फौंट डाउन लोड करना एवं अपने कंप्यूटर पर लोड करना नहीं आता है।
६) सी-डेक (C-Dac) की वेब-साइट पर यह स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए कि अन्य सभी पैकेजों की तुलना में inscript का प्रयोग बहुत ही आसान है।
७) पुराने वर्जन के लीप ऑफिस सॉफ्टवेयर को नए वर्जन में convert करने के लिए विक्रेता लगभग २०००/- रूपये लेते हैं जबकि यह कीमत कम होनी चाहिए और सी-डैक की साइट पर स्पष्ट रूप रूप से लिखी होनी चाहिए सम्भवतः लीप ऑफिस का update version फ्री दिया जाना चाहिए।
८) लीप ऑफिस की जगह अगर हिंदी टाइपिंग के लिए आई.एस.एम. ऑफिस का प्रयोग करते हैं तो आई.एस.एम. ऑफिस में हिंदी के शब्द टूट जाते हैं।
संकट
हिंदी अर्थात हिंदी एवं अन्य सभी भारतीय भाषाएँ, जिनकी अक्षर रचना एक समान है, के बेमानी या अप्रासंगिक हो जाने के संकट का रोकना।
संकट की मुख्य दिशा
संकट कई दिशाओं से है और रोकने के प्रयास भी कई दिशाओं में करने होंगे। लेकिन सबसे तीव्र और वेगवान संकट इंटरनेट के ई-मेल के माध्यम से आ रहा है।
सहयोग के माध्यम
यह सहयोग भी कई दिशाओं से उपलब्ध होना पड़ेगा और इसके कई आयाम होंगे।
1. तकनीकी
२. आर्थिक संबल
३. प्रशासकीय संबल
४. भाषाविदों का सहयोग
५. विचारवान् व्यक्तियों का नैतिक दबाव
६. उद्योजक और उत्पादकों का सहयोग
समस्या के निकटवर्ती प्रशासनिक विभाग
1. राज्यभाषा विभाग क़्.ग््र.क.
२. क़्.ग््र.क.
३. ग़्.क्ष्.क्.
४. क़्. दृढ -ङ.
५. क़्. दृढ च्च््र.
राजभाषा विभाग का रोल
१) हिंदी software बनाने वाली सभी कंपनियों की meeting बुलाकर उन्हें storage code के standardisation के लिये कहा जाय।
२) क़्ग््रक से उनकी ड़दृथ््रद्रठ्ठद्यत्डत्थ्त्द्यन््र की सुविधा पर द्धड्ढद्मड्ढठ्ठद्धड़ण् करवा कर ड़दृथ््रद्रठ्ठद्यत्डत्थ्त्द्यन््र के लिये त्दद्मत्द्मद्य किया जाय।
३) चूँकि सरकार इन द्रठ्ठड़त्त्ठ्ठढ़ड्ढद्म के लिये एक डद्वथ्त्त् ड़दृदद्मद्वथ््रड्ढद्ध है, अत द्मदृढद्यध््रठ्ठद्धड्ढ कंपनियों पर दबाव डाल कर द्रद्धत्ड़त्दढ़ द्रदृथ्त्ड़न््र,
थ्दृड़त्त्त्दढ़, द्रत्द्धठ्ठड़न््र आदि मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हो। जिसे द्रत्द्धठ्ठड़न््र कह कर नकारा जाता है। उसकी खुलेआम छूट हो और उसके फायदों से खासकर डत्ढ़ढ़ड्ढद्ध थ््रठ्ठद्धत्त्ड्ढद्य द्धड्ढठ्ठड़ण् के फायदे से द्रद्धदृड्डद्वड़ड्ढद्धद्म को ड़दृदध्त्दड़ड्ढ किया जाय।
४) क़्ग््रक और क्-क़्ऋक् या अन्य तकनीकी विशेषज्ञों की मदद से मौलिक प्रक्रिया में ही हिंदी को लाया जाय।
५) ग़्ङक्ष् विशेषज्ञों को आवाहन कर उन्हें द्धड्ढद्मड्ढठ्ठद्धड़ण् के लिये प्रवृत्त किया जाय।
६) सरकारी कार्यालयों में आज हिंदी द्रठ्ठड़त्त्ठ्ठढ़ड्ढद्म की क्या दिक्कतें हैं, इस विषय में -ग््रक़्'द्म को द्मड्ढदद्मत्द्यत्ड्ढ कराने का कार्यक्रम शुरु किया जाय।
७) इस दिशा के द्धड्ढद्मड्ढठ्ठद्धड़ण् को ढद्वदड्डत्दढ़ करवाया जाय।
८) हिंदी के विचारवंनों की गोष्ठी बुलाकर उनसे एक द्रद्धड्ढद्मद्मद्वद्धड्ढ ढ़द्धदृद्वद्र के रुप में काम करवाया जाय।
९) शब्दकोषों को बढ़ावा दिया जाए।
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