हिंदी और भारतीय भाषाओं को उतना नुकसान अंग्रेजों ने नहीं पहुंचाया जितना कि आजादी के बाद काले अंग्रेजों ने पहुंचाया। वे जिन्होंने जाने-अनजाने उच्च- शिक्षा, रोजगार और व्यापार-व्यवसाय व देश के तंत्र को अंग्रेजीकरण की ओर धकेला । इसी के चलते धीरे-धीरे शिक्षा का अंग्रेजीकरण हुआ और भारतीय भाषाएँ हाशिए पर जाती चली गईं।हिंदी सहित तमाम भारतीय भाषाओं को एक बड़ा झटका तब लगा जब लिपियों पर हमला प्रारंभ हुआ। लिपि के माध्यम से भारतीय भाषाओं पर यह हमला शायद पहले के हमलों के मुकाबले अधिक घातक था चूंकि इसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां सदा - सदा के लिए अपनी भाषा से कट जाती हैं। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के साथ-साथ देवनागरी सहित भारतीय लिपियों के लिए प्रौद्योगिकी-सुविधा की कमी आदि कारण तो थे ही इसके अतिरिक्त अंग्रेजीपरस्तों की सुविधा और हिंदी के क्षेत्र में उनका वर्चस्व भी इसका एक महत्वपुर्ण कारक बन रहा है। प्रबंधन में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते हिंदी के पत्र-पत्रिकाओं, चैनलों में भी हिंदी के लिए रोमन लिपि प्रचलन में आने लगी है। गोवा जहाँ की भाषा कोंकणी और लिपि देवनागरी है, वहाँ तो एक वर्ग पहले से ही कोंकणी के लिए रोमन लिपि की माँग करता रहा है । इस वातावरण से रोमन लिपि के ऐसे समर्थकों को भी काफी मदद मिली। इधर चेतन भगत जैसे अंग्रेजी लेखक भी मौका देख देवनागरी लिपि, जो हिंदी सहित अनेक भारतीय भाषाओं की लिपि है, के खिलाफ या यूँ कहें रोमन के पक्ष में उतर आए ।ऐसे में जबकि ज्यादातर साहित्यकार मौन साधे थे तब जिन लोगों ने भारतीय भाषाओं के लिए रोमन के प्रयोग को थोपने के खिलाफ आवाज बुलन्द की उनमें एक प्रमुख नाम था डॉ परमानन्द पांचाल । हिंदी और भारतीय भाषाओं को उतना नुकसान अंग्रेजों ने नहीं पहुंचाया जितना कि आजादी के बाद काले अंग्रेजों ने पहुंचाया। वे जिन्होंने जाने-अनजाने उच्च-शिक्षा, रोजगार और व्यापार-व्यवसाय व देश के तंत्र को अंग्रेजीकरण की ओर धकेला । इसी के चलते धीरे-धीरे शिक्षा का अंग्रेजीकरण हुआ और भारतीय भाषाएँ हाशिए पर जाती चली गईं।हिंदी सहित तमाम भारतीय भाषाओं को एक बड़ा झटका तब लगा जब लिपियों पर हमला प्रारंभ हुआ। लिपि के माध्यम से भारतीय भाषाओं पर यह हमला शायद पहले के हमलों के मुकाबले अधिक घातक था चूंकि इसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां सदा - सदा के लिए अपनी भाषा से कट जाती हैं। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के साथ-साथ देवनागरी सहित भारतीय लिपियों के लिए प्रौद्योगिकी-सुविधा की कमी आदि कारण तो थे ही इसके अतिरिक्त अंग्रेजीपरस्तों की सुविधा और हिंदी के क्षेत्र में उनका वर्चस्व भी इसका एक महत्वपुर्ण कारक बन रहा है। प्रबंधन में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते हिंदी के पत्र-पत्रिकाओं, चैनलों में भी हिंदी के लिए रोमन लिपि प्रचलन में आने लगी है। गोवा जहाँ की भाषा कोंकणी और लिपि देवनागरी है, वहाँ तो एक वर्ग पहले से ही कोंकणी के लिए रोमन लिपि की माँग करता रहा है । इस वातावरण से रोमन लिपि के ऐसे समर्थकों को भी काफी मदद मिली। इधर चेतन भगत जैसे अंग्रेजी लेखक भी मौका देख देवनागरी लिपि, जो हिंदी सहित अनेक भारतीय भाषाओं की लिपि है, के खिलाफ या यूँ कहें रोमन के पक्ष में उतर आए ।ऐसे में जबकि ज्यादातर साहित्यकार मौन साधे थे तब जिन लोगों ने भारतीय भाषाओं के लिए रोमन के प्रयोग को थोपने के खिलाफ आवाज बुलन्द की उनमें एक प्रमुख नाम था डॉ परमानन्द पांचाल । डॉ. परमानंद पांचाल दक्खिनी हिंदी साहित्य के ख्याति प्राप्त विद्वान, लिपि विशेषज्ञ और एक प्रतिष्ठित साहित्यकार है। पिछले चार दशकों से हिंदी भाषा और साहित्य के विभिन्न पक्षों, ज्ञान विज्ञान, पर्यटन, संस्कृति और इतिहास पर निरन्तर लेखन द्वारा लेख और निबंध की विधाओं को नया आयाम दिया है। इन्होंने देश और विदेश में देवनागरी के प्रचार-प्रसार हेतु अपना सारा जीवन समर्पित का दिया है। राष्ट्रीय एकता के लिए नागरी लिपि का प्रचार-प्रसार इनका मिशन है।1930 में ग्राम-सिरसली (उतर-प्रदेश) में जन्मे डॉ. परमानंद पांचाल केन्द्रीय सरकार के कार्यालय में हिंदी का प्रयोग बढ़ाने के कार्य से संबद्ध रहे हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना के समय डॉ0 परमानंद पांचाल हिंदी के परामर्शदाता रहे और हिंदी माध्यम से उच्च पाठ्यक्रम तैयार करने में विशेष योगदान दिया। डॉ. परमानंद पांचाल ने राष्ट्रपति के विशेष-कार्य अधिकारी (ओ.एस.डी.भाषा) के रूप में हिंदी की उल्लेखनीय सेवा की। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी द्वारा देश और विदेश में दिए जाने वाले हिंदी भाषणों को तैयार करने के महत्वपूर्ण उतरदायित्व का बड़ी सफलता से निर्वाह किया। यह इतिहास में पहला अवसर था जब राष्ट्रपति के मूल भाषण विदेशों में भी केवल हिंदी में ही होते थे और राष्ट्रपति भवन की आधिकारिक भाषा एक प्रकार से हिंदी बन गई थी, वहां जिस निष्ठा और परिश्रम से हिंदी को लोकप्रिय बनाया गया था, उस का वास्तविक श्रेय डॉ. परमानंद पांचाल की सेवाओं को ही जाता हैं।बतौर लेखक भी पांचालजी का हिंदी साहित्य को महत्वपूर्ण योगदान है। उनके प्रकाशित साहित्य में हिंदी में कीओ 23 पुस्तकें और प्रमुख-पत्र पत्रिकाओं में 400 से अधिक लेख है। इनकी पुस्तकें विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित है। ये हैं -हिंदी के मुस्लिम साहित्यकार, ‘दक्खिनी हिंदी: विकास और इतिहास’, दक्खिनी हिंदी की पारिभाषिक शब्दावली, कोहीनूर (लेख संग्रह), विदेशी यात्रियों की नजर में, भारत के सुन्दर द्वीप, अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह, भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह और हिंदी, हिंदी भाषा: राजभाषा और लिपि, भारत की महान विभूति, अमीर खुसरो, दक्खिनी हिंदी: इतिहास और शब्द सम्पदा, सोहन लाल द्विवेदी, दक्खिनी हिंदी काव्य संचयन, प्रयोजन मूलक हिंदी, हिंदी भाषा: विविध आयाम , महान सूफी संत अमीर खुसरो, हिन्दी भाषा:-प्रासंगिकता और व्यापकता ।पांचालजी ने उर्दू की कई प्रमुख साहित्यिक कृतियों का हिंदी में अनुवाद भी किया। ये हैं - जिगर मुरादाबादी, मिर्जा मुहम्मद रफी सौदा, गुफत्गू, फिराक गोरखपुरी, शबनमिस्तॉ, फिराक गोरखपुरी कहीं कुछ कम है’,(शहरयार)। इनके द्वारा सम्पादित ग्रंथ हैं-विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पंचम विश्व हिंदी सम्मेलन के अवसर पर प्रकाशित ‘स्मारिका, कथा-दशक (कहानी संग्रह) का संपादन भी किया गया।कुरुक्षेत्र तथा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालयों जैसे कई विश्वविद्यालयों में इनके साहित्य पर शोध कार्य भी सम्पन्न हो चुका है। इनमें ‘हिंदी गद्य को डॉ0 परमानंद पांचाल की देन शेष’ रूप से उल्लेखनीय है । उन्होंने विश्व हिंदी सम्मेलनों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। त्रिनिडाड एवं टोबेगो में आयोजित पांचवे विश्व हिंदी सम्मेलन में डॉ0 परमानंद पांचाल की भूमिका रही। इन्होंने इस अवसर पर विदेश मंत्रालय की ओर से प्रथम बार प्रकाशित ‘स्मारिका-1996’ का कुशल सम्पादन किया। 8वें विश्व हिंदी सम्मेलन न्यूयार्क में देवनागरी लिपि सत्र में बीज भाषण तथा 9वें विश्व हिंदी सम्मेलन , दक्षिण अफ्रीका में सूचना प्रौद्योगिकी और नागरी लिपि पर व्याख्यान भी प्रस्तुत किए। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा देश –विदेश में 11 विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थाओं व कई महत्वपूर्ण मंचों पर भाषण व्याख्यान दिए गए हैं।अपने उल्लेखनीय कार्यों के लिए डॉ. परमानन्द पांचाल को अनेक महत्वपूर्ण पुरस्कार एवं समान सम्मान भी प्राप्त हुए हैं। ये हैं :-राजभाषा विभाग गृहमंत्रालय, भारत सरकार द्वारा हिंदी सेवाओं के लिए सम्मान, ‘भारतके सुन्दर द्वीप’ पुस्तक पर भारत सरकार द्वारा ‘राहुल, सांकृत्यायन’ पुरस्कार, हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा ‘विद्या वाचस्पति’ की मानद उपाधि, भारतीय विद्या संस्थान,त्रिनिडाड एवं टुबैगो द्वारा साहित्यिक श्रेष्ठता के लिए सम्मान पत्र, ‘हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा वर्ष 2005-06 के लिए साहित्य सम्मान’, द्वितीय हिंदी भाषा कुम्भ, बेंगलौर द्वारा ‘अति विशिष्ट’ हिंदी सेवी पुरस्कार-2006, इन्द्र प्रस्थ साहित्य भारती द्वारा जैनेन्द्र कुमार सम्मान-2006, राष्ट्रीय हिन्दी परिषद्, मेरठ द्वारा ‘हिन्दी रत्न’ सम्मान- 2006, राष्ट्रपति जी द्वारा राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार वर्ष 2010। । हाल ही में भैपाल में आयोजित 10 वें विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत के गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह जी द्वारा विश्व हिन्दी सम्मान-2015 प्रदान किया गया।डॉ. परमानन्द पांचाल ने विभिन्न पदों को सुशोभित किया वे नागरी लिपि परिषद् नई दिल्ली के महामंत्री और ‘नागरी-संगम’ पत्रिका के प्रधान सम्पादक , भारतीय साहि संगम (रजि0) के अध्यक्ष, मातृ-भाषा विकास परिषद् के अध्यक्ष, अमीर खुसरो अकादमी के अध्यक्ष, हिंदी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद की स्थायी समिति के सदस्य और दिल्ली प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष हैं। साथ ही वे भारत सरकार के कई मंत्रालयों जैसे पर्यटन तथा संस्कृति, विद्युत, संसदीय कार्य, तथा जल संसाधन मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य और केन्द्रीय सचिवालय, हिंदी परिषद् की स्थायी समिति के सदस्य व परामर्शदाता हैं। वे वर्ष 2002-2007 तक साहित्य अकादेमी के सदस्य रहें और केन्द्रीय हिंदी समिति (भारत सरकार) के सदस्य भी रहे हैं।सरकारी सेवा के पश्चात भी इनका मन हिंदी भाषा की सेवा के लिए समर्पित रहा। वे देश -विदेश में देवनागरी लिपि को लोकप्रिय बनाने के लिए आचार्य विनोबा भावे के मिशन को पूरा करने में बड़ी नि:स्वार्थ भावना से गे है। लगे हैं। वे कहते हैं, ’स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माताओं ने जहां संविधान के अनुच्छेद 343 (!) में हिन्दी को राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया है वहीं देवनागरी लिपि को इसकी अधिकारिक लिपि के रूप में मान्यता दी। भारत एक बहुभाषी देश है, जहां अनेक भाषाएं बोलने वाले लोग रहते हैं। भाषाओं की भांति यहां लिपियां भी अनेक है। एक अनुमान के अनुसार याहं 25 लिपियों का प्रयोग होता है, जिन में 14 प्रमुख हैं। इन में सबसे प्रमुख है देवनागरी लिपि, जो हिन्दी के अतिरिक्त संविधान की 8 वीं अनुसूची में सम्मिलित भारत की कई प्रमुख भाषाओं यथा संस्कृत, मराठी, डोगरी, नेपाली, मैथिली, तथा बोडो, की भी अधिकृत लिपि है। इनके अतिरिक्त ‘कोंकणी’ और ‘संथाली’ भाषाएं भी इसे स्वीकार कर रही है। प्राकृत, अपभ्रंश जैसी प्राचीन भाषाएं भी देवनागरी लिपि में ही लिखी जाती हैं। गुजराती की लिपि भी शिरोरेखा रहित ‘देवनागरी’ लिपि ही है। वास्तविकता यह है कि उर्दू की अपनी लिपि फारसी होते हुए भी, भारत में आज इसकी अधिकतर रचनाएं देवनागरी लिपि में ही प्रकाशित हो रही हैं। भारतीय एकता की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण है कि भारत की सभी प्रमुख भाषाओं की लिपियां ब्राह्मी से ही निकली हैं। इस प्रकार वे भी देवनागरी लिपि की सहोदरा ही हैं। इसी एकरूपता के कारण आज कम्प्यूटर टाइपिंग के लिए सबका की-बोर्ड भी समान है। स्पष्ट है कि देवनागरी लिपि का एक राष्ट्रीय महत्व है।‘ आज जबकि हिंदी साहित्य,शिक्षा आदि से जुड़ा एक बहुत बड़ा वर्ग भाषा-प्रौद्योगिकी से क्या हुआ है वे इसके पक्ष में पूरी मजबूती से खड़े होते हैं और कहते हैं:- कम्प्यूटर और मोबाइल जैसे उपकरण भाषा और लिपि के प्रयोग के प्रमुख माध्यम बन चुके हैं और इंटरनेट के माध्यम से भाषा का विश्व में प्रसार हो रहा है, आज सूचना और प्रौद्योगिकी का युग है, जो निश्चय ही भाषा और लिपि पर आधारित हैं। इसलिए विश्व में हिन्दी के तेजी से विकास के लिए हिन्दी को इन्टरनेट के प्रयोग के द्वारा विश्व में इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ाने में रुचि लेनी चाहिए। । अलग-अलग फोंट और शैली अपनाने के कारण एक-दूसरे दस्तावेजों को पढ़ना संभव नहीं था। लेकिन हिन्दी में ‘यूनिकोड’ फोंट के आने से स्थिति बदल गई है। हिन्दी के प्रायः: सभी समाचार पत्र इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। प्रमुख पत्रिकाएं भी ऑन-लाइन पढ़ी जा सकती हैं। अतः: आवश्यकता है कि हिन्दी साहित्य से जुड़े लोग तकनीक से भी जुड़ें। साहित्यकार, अध्यापक, पत्रकार और अनुवादक कम्प्यूटर पर हिन्दी का प्रयोग करें। तभी हम हिन्दी को विश्व की एक सशक्त, गतिशील और उन्नत भाषा बना सकेंगे। हम हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने की तो बात करते है, किंतु इसके लिए आधुनिकतम तकनीकों के प्रयोग से बचते हैं। हमें पहले हिन्दी को इसके लिए तैयार करना होगा। हिन्दी को सशक्त सरल और सक्षम बनाना होगा। तभी हम इसे विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित कर सकेंगे।‘वे कहते हैं- ‘क्योंकि यहाँ संसार की एक मात्र सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक और ध्वन्यात्मक लिपि है, जो कम्प्यूटर पर प्रयोग के अधिक समीप और उपयुक्त है। सूचना और प्रौद्योगिकी के इस युग में देवनागरी ने अपनी श्रेष्ठता और वैज्ञानिकता विश्व के सामने सिद्ध कर दी है और इस लिपि को कम्प्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त माना है,‘नासा’ के एक वैज्ञानिक ‘रिक ब्रिगस’ ने तो 1985 के अपने एक लेख में यह घोषित ही कर दिया है कि देवनागरी लिपि कम्प्यूटर आज्ञावानी की दृष्ठि से आदर्श लिपि है। आज विश्व में हिन्दी बोली तो खूब बोली जा रही है किन्तु यह एक विडम्बना ही है कि हम बोलने में तो हिन्दी का खूब प्रयोग करते हैं किन्तु लिखते समय रोमन लिपि की ओर बढ़ जाते हैं। कारण यह है कि हिन्दी के सामने बड़ी समस्या हिन्दी टाइपिंग की है। भारत की राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां बाजार में अंग्रेजी के टाइपिस्ट तो खूब मिलेंगे किन्तु हिन्दी के ढूंढने से ही शायद कहीं मिलें। हमें कम्प्यूटर पर हिन्दी को सरल और लोकप्रिय बनाने के लिए इसके विविध फोंटो में एकरूपता लानी होगी। कई बार एक फोंट पर टाइप किया सन्देश दूसरे कम्प्यूटर पर खुलता ही नहीं। कम्प्यूटर के की-बोर्ड भी देवनागरी में नहीं है। प्रसन्नता का विषय है कि भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने 17 फरवरी 2012 के अपने आदेश में कहा है कि – भारत सरकार के सभी मंत्रालय और कार्यालय यूनिकोड कम्पलाएन्ट फोंट्स एवं यूनिकोड के अनुरूप सोफटवेयर तथा इनस्क्रिप्ट कुंजी-पटल का ही इस्तेमाल करें, तो भारत सरकार का मानक की-बोर्ड है और सभी ओपरेटिंग सिस्टम्स में डिफाल्ट में (यानि पहले से मौजूद) रहता है। किसी एक भाषा में इनस्क्रिप्ट की-बोर्ड सीखने पर सभी भारतीय भाषाओं में आसानी से टंकण किया जा सकता है।‘देवनागरी व भारतीय लिपियों के संवर्धन और इनके माध्यम से हिंदी व भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार को ध्यान में रखकर वे निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत करते हैं:-1 भारत सरकार के सभी मंत्रालय और कार्यालय यूनिकोड कम्पलाएन्ट फोंट्स एवं यूनिकोड के अनुरूप सोफ्टवेयर तथा इनस्क्रिप्ट कुंजी-पटल का ही इस्तेमाल करें, तो भारत सरकार का मानक की-बोर्ड है और सभी ओपरेटिंग सिस्टम्स में डिफाल्ट में (यानि पहले से मौजूद) रहता है। किसी एक भाषा में इनस्क्रिप्ट की-बोर्ड सीखने पर सभी भारतीय भाषाओं में आसानी से टंकण कर सकते हैं। आदेश के अनुसार दो वर्ष बाद रेंमिग्टन की-बोर्ड का प्रयोग नहीं किया जा सकेगा।2 सभी कम्प्यूटर द्विभाषी की-बोर्ड वाले ही खरीदे जाएं-जिनमें ‘इनस्क्रिप्ट ले-आउट’ अवश्य हो।3 सभी नई भर्तियों के लिए हिन्दी टाइपिंग परीक्षा ‘इनस्क्रिप्ट’ की-बोर्ड पर ही लेना अनिवार्य हो।4 सभी सरकारी कार्यालयों की वेबसाइट द्विभाषी और यूनिकोड समर्थित फोंट में ही तैयार कराई जाएं।5. हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने के लिए अब वेब पर ‘डोमेन नेम’ नागरी में भी उपलब्ध कराए जा सकेंगे। किन्तु आवश्यकता है कि वर्तनी जांच सम्बन्धी क्रमादेश भी सारे सॉफटवेयर निर्माताओं के लिए एक ही होने चाहिए, जो मानक वर्तनी के आधार पर हों।सूचना के इस युगमें संचार माध्यमों पर हिन्दी का प्रयोग तो बढ़ रहा है, किन्तु अनेक चैनलों पर शीर्षक रोमन में ही नजर आते हैं। इस संबंध में उनका कहना है कि ‘दूरदर्शन’ पहले देवनागरी में लिख जाता था। अब वह ‘डी. डी.’ बन कर रह गया है। कहना न होगा कि संक्षिप्तीकरण के चक्कर में हिन्दी के मूल शब्द ही गायब होते जा रहें है। ‘मुख्यमंत्री’ को समाचार पत्र केवल ‘सी.एम.’ लिख देते है। प्रधानमंत्री को ‘पीएम’ आदि। ऐसी परिपाटी से हिन्दी सरल होने के बजाए दुरूह होती जा रही है और रोमन लिपि का प्रचलन बढ़ता नज़र आता है, जो न तो हिन्दी के हित में है और न ही राष्ट्र के हित में।आज हिंदी की भाषा ही नहीं लिपि भी निरन्तर पिछड़ती जा रही है जिसके चलते जनसामान्य, नई पीढ़ियाँ भाषा और साहित्य दोनों से कटती जा रही हैं। लेकिन हिंदी के नाम पर ज्यादातर कवायद केवल साहित्य को ले कर दिखती है। ऐसे में एक वयोवृद्ध साहित्यकार न केवल लिपि के लिए मजबूती से खड़ा होता है बल्कि उसके लिए भाषा-प्रौद्योगिकी का प्रबल समर्थक बनकर सही मायने में प्रगतिशील होने का भी परिचय देता है। इस प्रकार वह न केवल हिंदी का बल्कि तमाम भारतीय भाषाओं का प्रहरी बनकर खड़ा होता है। वयोवृद्ध साहित्यकार, लेखक, भाषा-कर्मी भारत-भाषा प्रहरी 'डॉ. परमानन्द पांचाल' को वैश्विक हिंदी सम्मेलन का सादर नमन !
प्रस्तुति - डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'संपर्क :-डॉ. परमानंद पांचाल
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