गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

नई शिक्षा नीति सुझाव -डॉ.गुप्ता

भारत सरकार, मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा नई शिक्षा नीति - 2016 का मसौदा प्रस्तुत करते हुए
नागरिकों से इस संबंध में 31 जुलाई 2016 तक सुझाव  माँगे गए हैं। अत: निम्नलिखित सुझाव विचारार्थ प्रस्तुत हैं।
नई शिक्षा नीति में  भारतीय भाषाओं व संस्कृति से संबंधित सुझाव ।
डॉ.एम.एलगुप्ता 'आदित्य'
डॉ.एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'
डॉ.एम.एलगुप्ता 'आदित्य'
भाषा-शिक्षण : -
1. भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार हिंदी संघ की राजभाषा है और अनुच्छेद 351 में यह निदेश दिया गया है कि संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके । संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित राजभाषा संकल्प – 1968 में भी संसद द्वारा यही संकल्प व्यक्त किया गया है - “जबकि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी रहेगी और उसके अनुच्छेद 351 के अनुसार हिंदी भाषा का प्रसार, वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है । इसलिए भारत के संविधान के निदेशानुसार एवं संसद द्वारा पारित संकल्प की पूर्ति के लिए हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाने और हिंदी को भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाने के लिए यह आवश्यक है कि भारत संघ के सभी भागों में विद्यार्थियों को प्राथमिक स्तर से दसवीं तक निजी व सरकारी सभी स्कूलों में एक विषय के रूप में हिंदी भाषा अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाए । भारत की एकता-अखंडता व राष्ट्रीय संपर्क भाषा के रूप में सुदृढ़ करने के लिए भी यह आवश्यक है।

2. संविधान के अनुच्छेद - 345 में राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा या भाषाओं के रूप में अंगीकार करने का उपबंध है। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित राजभाषा संकल्प – 1968 खंड 2 में कहा गया है कि –‘जबकि संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी के अतिरिक्त भारत की 21 मुख्य भाषाओं का उल्लेख किया गया है, और देश की शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इन भाषाओं के पूर्ण विकास हेतु सामूहिक उपाए किए जाने चाहिए ।' अत: जनता के जनतांत्रिक अधिकारों के लिए तथा  राज्य की सांस्कृतिक विरासत के विकास व संरक्षण के लिए भी राज्य की भाषा अथवा भाषाओं का शिक्षण आवश्यक है।अत: प्रारंभ से ही राज्य की राजभाषा का शिक्षण अत्यंत आवश्यक है।

3. चूंकि संस्कृत भारत की अधिकांश भाषाओं की जननी है और तमाम भारतीय भाषाओं के बीच अटूट संबंध स्थापित करती है । संस्कृत में भारत का प्राचीन ज्ञान-विज्ञान, आध्यात्म व साहित्य सहित महान वाड्मय निहित है। संस्कृत भारतीय सांस्कृतिक विरासत का मूल आधार भी है इसलिए स्कूल/कॉलेजों में संघ व राज्य की राजभाषा के अतिरिक्त वैकल्पिक विषय के रूप में संस्कृत शिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि संस्कृत में उपलब्ध उच्च स्तरीय दुर्लभ ज्ञान-विज्ञान की उपलब्धता के चलते विकसित देशों सहित अनेक विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जाती है। लेकिन भारत में ही संस्कृत शिक्षा को समुचित महत्व न मिलने से भारत इस ज्ञान का समुचित लाभ नहीं उठा सका।

4. राजभाषा संकल्प – 1968 खंड 3 में देश के विभिन्न भागों में जनता में संचार की सुविधा हेतु यह आवश्यक माना गया है कि भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के परामर्श से तैयार किए गए त्रि-भाषा सूत्र को सभी राज्यों में कार्यान्वित करने के लिए प्रभावी उपाय करने को कहा गया है जिसमें हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी तथा अंग्रेजी के अतिरिक्त एक आधुनिक भारतीय भाषा के, दक्षिण भारत की भाषाओं में से किसी एक को तरजीह देते हुए, और अहिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रादेशिक भाषाओं एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी के अध्ययन के लिए उस सूत्र के अनुसार प्रबन्ध किया जाना चाहिए ।हिंदी के साथ-साथ इन सब भाषाओं के समन्वित विकास हेतु भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से एक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा ताकि वे शीघ्र समृद्ध हों और आधुनिक ज्ञान के संचार का प्रभावी माध्यम बनें । इसलिए विद्यार्थियों के लिए हिंदी व अंग्रेजी के अतिरिक्त राज्य की राजभाषा अनिवार्यत: पढ़ाई जानी चाहिए । भाषा शिक्षण की उक्त व्यवस्था निजी व सरकारी सभी स्कूलों पर लागू की जानी चाहिए

5. देश में पिछले कुछ वर्षों में एक चलन हुआ है कि अनेक स्कूलों द्वारा स्कूल स्तर पर संघ की या राज्य की भाषा के स्थान पर विदेशी भाषा का विकल्प दिया जाता हैं जिनमें अधिक अंक पाने के आकर्षण का समावेश होता है जबकि स्कूल स्तर पर पढ़ाई गई फ्रेच/जर्मन आदि भाषाओं से न तो उन भाषाओं का विशेष ज्ञान होता है न ही वह किसी काम आता हैं। स्कूल स्तर पर संघ की या राज्य की भाषा के स्थान पर विदेशी भाषा का विकल्प नहीं दिया जाना चाहिए । वे विद्यार्थी जो गंभीरतपूर्वक विदेशी भाषाएं सीखना चाहते हैं उनके लिए देश के सभी विश्वविद्यालयों में विदेशी भाषा विभागों के अतर्गत स्तरीय विदेशी भाषा-शिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए और इसे प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए।

6. भाषा और संस्कृति का चोली दामन का साथ है। भाषा जब आती है तो अपनी संस्कृति साथ ले कर आती है और जब जाती है तो अपनी संस्कृति भी साथ लेती जाती है। अगर पहली कक्षा से अंग्रेजी पढ़ाई जाए या प्रारंभ से ही अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जाए और साथ ही भारतीय संस्कृति के संरक्षण की बात की जाए तो यह विरोधाभासी होगा। भाषा अपने साथ अपनी संस्कृति को भी स्थापित करती है। नर्सरी कक्षा से ही अंग्रेजी को घुट्टी में घोल कर पिलाने से भारतीय भाषा और संस्कृति का निरंतर क्षय हुआ है। भारतीय राष्ट्रीयता का आधार इसकी सामासिक संस्कृति है जिसकी निरंतरता भारत की भाषाओं से है । इसलिए संघ व राज्यों की भाषाओं का अनिवार्य शिक्षण देश की एकता अखंडता की दृष्टि से भी आवश्यक है।

साथ ही यह भी सत्य है कि जब तक देश में उच्च शिक्षा, विशेषकर विज्ञान व प्रौद्योगिकी की शिक्षा में तथा रोजगार के तमाम क्षेत्रों में अंग्रेजी का वर्चस्व रहेगा अभिभावकों कि प्रारंभ से अंग्रेजी शिक्षा व अंग्रेजी माध्यम की माँग को नकारा नहीं जा सकता इसलिए इन बातों को (उच्च-शिक्षा व रोजगार) से परस्पर जोड़ कर ही आगे बढ़ना होगा।

7. देश-दुनिया के सभी विचारकों व शिक्षाविदों का यह मानना है कि मात़ृभाषा में शिक्षा व्यक्ति के विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ है। प्राय: सभी विकसित देशों में शिक्षा का माध्यम उनकी अपनी भाषाएं हैं और इसके विपरीत विदेशी भाषा माध्यम वाले ज्यादातर देश अविकसित या विकासशील श्रेणी में हैं। ज्ञान-विज्ञान में शीर्ष देशों ने भी मातृभाषा के माध्यम से ही विकास का सफर तय किया है। लेकिन भारत में ठीक इसके उलट हुआ है। स्वतंत्रता के पश्चात भी देश में ज्यादातर बच्चे मातृभाषा में ही शिक्षा पाते थे लेकिन उच्च शिक्षा व रोजगार को अंग्रेजी के वर्चस्व के बढ़ने के चलते धारा उलटी बहने लगी। पूरे देश में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की बाढ़ मातृभाषा व राजभाषा माध्यम के स्कूल कॉलेजों को लीलती जा रही है।
भारत सरकार द्वारा विज्ञान-प्रौद्योगिकी सहित विभिन्न क्षेत्रों में नए विचारों नवोन्मेष (Innovation) और नए आविष्कारों पर जोर दिया जा रहा है। यह एक महत्वपूर्ण व सराहनीय कदम है । यहाँ उल्लेखनीय है कि मौलिक चिंतन हमेशा अपनी भाषा में ही होता है ऐसे में अंग्रेजी भाषा माध्यम से शिक्षण के जरिए नवोन्मेष ( Innovation) की अपेक्षा करना संगत प्रतीत नहीं होता। अत: दीर्घकालीन नीति के द्वारा भारतीय भाषाओं के माध्यम से उच्च शिक्षा व रोजगार के रास्ते खोलते हुए राज्य की भाषाओं व संघ की भाषा के माध्यम से शिक्षा की व्यवस्था करना आवश्यक है ।
प्राथमिक स्तर पर विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षण बच्चों के विकास व सीखने की स्वभाविक प्रक्रिया को कुंद कर उनंहे नकलची बनाने की ओर प्रवृत्त करता है। ऐसी शिक्षा व्यवस्था से नवोन्मेष ( Innovation) या आविष्कारों की विशेष संभावना नहीं। किसी देश के विकास के लिए इससे बड़ी त्रासदी नहीं हो सकती । इसलिए देश में कहीं भी प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिए। यह व्यवस्था सरकारी / निजी अथवा अल्पसंख्यक श्रेणी आदि सहित सभी तरह के स्कूलों पर समान रूप से लागू होनी चाहिए ।

8. यह देखने में आया है कि नर्सरी स्तर से ले कर सभी स्तरों पर अंग्रेजी भाषा शिक्षण में पाश्चात्य संस्कृति को परोसा जाता है। कविताओं व गीतो कहानियों व अन्य पाठ्यसामग्री में भारत की ऋतुएं, मौसम, नदियाँ, पहाड़, नृत्य, संगीत, पर्व, परंपराएँ, इतिहास, पौराणिक गाथाएँ, संत और महापुरुष न हो कर पाश्चात्य देशों के होते हैं । पाठ्य-सामग्री में भारतीय संस्कृति की झलक तक नहीं मिलती । इससे विद्यार्थियों का झुकाव बचपन से ही भारतीय संस्कृति के बजाए पाश्चात्य संस्कृति की ओर होने लगता है और वे पाश्चात्य संस्कृति को भारतीय संस्कृति को बेहतर मानने लगते हैं । यह भारतीय संस्कृति ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वरूप व अस्मिता के भी अनुकूल नहीं है। अत: सुझाव है कि अंग्रेजी भाषा शिक्षण में विशेषकर स्कूल स्तर पर पाठ्य सामग्री में पाश्चात्य संस्कृति के स्थान पर राज्य व राष्ट्र की संस्कृति का समावेश किया जाए । इसके लिए भारत के अंग्रेजी के अच्छे लेखकों का सहयोग लिया जा सकता है। उक्त पाठ्य-सामग्री सभी तरह के स्कूलों पर समान रूप से लागू होनी चाहिए।

भाषा- प्रौद्योगिकी शिक्षण : -
भारतीय भाषाओं के प्रयोग किए जाने की सबसे बड़ी बाधा भाषा- प्रौद्योगिकी के उपकरणों में भारतीय भाषाओं की सुविधा का या उसकी जानकारी शिक्षण / प्रशिक्षण तथा अनुसंधान को प्रोत्साहित न किया जाना है । इसलिए इस संबंध में शिक्षा-व्यवस्था में निम्नलिखित कदम शीघ्र उठाए जाने की आवश्यकता है।

1. कंप्यूटरों व मोबाइल आदि उपरकणों पर भारतीय भाषाओं में कार्य के लिए भारत सरकार द्वारा निर्धारित अत्यधित सरल और वैज्ञानिक इन्स्क्रिप्ट कुंजी-पटल उपलब्ध है । स्कूल – कॉलेज आदि में इसकी जानकारी न होने के कारण देवनागरी सहित भारतीय भाषाओं को रोमन लिपि में लिखने का चलन तेजी से बढा है। इस मामूली से प्रशिक्षण के अभाव में ज्यादातर भारतवासी अपनी मातृभाषा को अपनी भाषा की लिपि के बजाए रोमन लिपि में लिखते हैं । इसके कारण देवनागरी सहित अधिकांश भारतीय भाषाएँ प्रचलन से बाहर होती जा रही हैं। रोमन लिपि में इनके उच्चारण को ठीक प्रकार अभिव्यक्त करने की क्षमता न होने के कारण भारतीय भाषाओं पर भी इनका अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। यह एक अत्यंत गंभीर समस्या है।
इसलिए देश के सभी स्कूलों में माध्यमिक स्तर पर सूचना-प्रौद्योगिकी विषय के अंतर्गत हिंदी अथवा राज्य की भाषा में इन्स्क्रिप्ट कुंजी-पटल का प्रशिक्षण दिया जाए। जिसे कम समय में अभ्यास से उचित गति के साथ सीखा जा सकता है। इसे परीक्षा का अंग भी बनाया जाए ताकि इसे गंभीरतापूर्वक सीखा न सिखाया जाए। इससे किसी भी कंप्यूटर आदि पर भारतीय भाषा में मोबाइल आदि पर कार्य किया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की डॉ. ओम विकास की अध्यक्षता वाली सूचना-प्रौद्योगिकी व कंप्यूटर शिक्षा के लिए गठित पाठ्यक्रम समिति ने भी कई बार ऐसी सिफारिश की हैं। यह प्रशिक्षण निजी अथवा सरकारी सभी स्कूलों के पाठ्यक्रम में समान रूप से शामिल होना चाहिए।

2. सूचना-प्रौद्योगिकी शिक्षा से जुड़े सभी शिक्षा संस्थानों में पाठ्यक्रम में भारतीय भाषाओं से संबंघित भाषा-प्रोद्योगिकी सुविधाओं के शिक्षण का समावेश किया जाना चाहिए । इसी प्रकार प्रौद्योगिकी अनुसंधान व विकास कार्यों में भी भारतीय भाषाओं में कार्य सुविधाओं संबंधी अनुसंधान का समावेश किया जाना चाहिए ताकि प्रौद्योगिकी विकास की प्रक्रिया में भारतीय – भाषाएं पिछड़ न जाएँ ।

3. भाषा-शिक्षण के अंतर्गत स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर भाषा हेतु उपलब्ध सूचना प्रौद्योगिकी तथा कामकाज में हिंदी को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि भाषा में स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा पानेवाले विद्यार्थी भाषा-प्रौद्योगिकी के प्रयोग में भी पारंगत हों।

4. जनता को अपनी भाषा में कानूनी प्रक्रिया की सुविधा व न्याय मिल सके इसके लिए विधि शिक्षा में संघ/राज्य की भाषा में विधि की शिक्षा दिए जाने की व्यवस्था भी की जानी चाहिए

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