+91 74831 11706: दक्षेस भाषा
दक्षेस अर्थात दक्षिनेशिया के अंतर्गत 8 देश हैं,,भारत,अफगानिस्तान,पाकिस्तान,नेपाल,भूटान,बांग्लादेश,श्रीलंका और मालदीव,, जहां की अपनी अपनी राष्ट्र भाषाएं हैं क्रमशः हिंदी,पख्तून,उर्दू,नेपाली, भूटानी,बंगला,सिंहली व धिवे ही। इस क्षेत्र का पूर्व नाम आर्यावर्त है अतः सांस्कृतिक धरोहरों में समानता है,भाषाओं में समानता है इसीलिए वैश्विक स्तर पर इन्हें हिंदी भाषी माना जाता है।
आज जब संपूर्ण विश्व ,,रामायण,,देख रहा है और उसकी हिंदी समझ रहा है तो दक्षेस भाषा क्या है?का उत्तर आसानी से दिया जा सकता है,, हिंदी।आज भी भारत में 1652 बोलियां हैं फिर दक्षेस में तो 2200 बोलियां मानकर चलना चाहिए जहां हिंदी सर्वोपरि है 1अरब 90 करोड़ के पार।
दक्षेस यूरोपीय संघ के समांतर ही शक्तिशाली संगठन है जो 8 देशों के ऊपर महादेश है फिर उसकी भाषा हिंदी हो तो यह समय की मांग है जिससे यह विश्व भाषा बनने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ती दिखेगी।
दक्षेस में हिंदी तीसरे सोपान पर सीखी जाती है,,1 मा त्री भाषा 2अंग्रेजी3हिंदी,,तो पर भी हिंदी प्रथम स्थान पर है। वर्ण माला की दृष्टि से देखें तो दक्षेस की सभी भाषाओं में लगभग 50 वर्ण तथा 100 उप वर्ण होते हैं
जबकि देवनागरी में 49 वर्ण तथा 149 उप वर्ण हैं।
दक्षेस भाषाओं की जननी संस्कृत है तथा लिपियों की जननी ब्राह्मी है अतः आंतरिक समानताएं हैं जिसके कारण थोड़े से प्रयास से सीखे जा सकते हैं।शुभ उदय। डॉ रामनिवास साहू 7483111706
[9/6, 20:37] +91 74831 11706: दक्षेस लिपि
आज संपूर्ण विश्व रोमन,अरबी,चीनी व देवनागरी को जानता है। इनमें रोमन न0 1 पर है,चीनी 2,अरबी 3 तथा देवनागरी 4 पर है।संग नक की भाषा न0 1 तो रोमन ही है जिसका लिप्यांतरण कर अन्य भाषाओं में डी टी पी करना सरल व श्रम साध्य होता है।साथ ही साथ रोजगार मूलक भी है अतः दिन दूनी रात चौगुनी रोमन का विकास हो रहा है आज भी।
दक्षेस में देवनागरी तीसरे सोपान पर सीखी जाती है।मात्री लिपि 1 ,रोमन 2 देवनागरी 3 तो पर भी भाषा की दृष्टि से हिंदी न0 1 पर है।
दक्षेस की सभी भाषाओं में लगभग 50वर्ण होते हैं किंतु वर्तनी के लिए 100 से अधिक उप वर्णों का प्रयोग करते हैं।देवनागरी में 49 वर्ण हैं तथा 147 उप वर्ण हैं।शिक्षण,प्रशिक्षण में नवीनता लाकर उत्तम व सार्थक प्रयास किया जा सकता है।रोमन के 26 वर्णों की सफलता के समांतर कोई सूत्र बनाना ही होगा।
वैसे दक्षेस भाषाओं की जननी संस्कृत है तो लिपियों की जननी ब्राह्मी है अतः इस दिशा में सृजन की पूरी संभावना है।
दक्षेस समय की मांग है जिसे एक भाषा व एक लिपि से साध्य किया जा सकता है।शुभ उदय। डॉ रामनिवास साहू 7483111706
मंगलवार, 9 जून 2020
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