शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

*************वापरावे ३


टिप - विण्डोज़ में इन्स्क्रिप्ट का ऑनस्क्रीन कीबोर्ड होता है। इसके लिये Start>Run बक्से में जाकर osk लिखकर ऍण्टर दबायें। आपके सामने ऑनस्क्रीन कीबोर्ड आ जायेगा, फिर लैंग्वेज हॉटकी दबाकर हिन्दी भाषा में स्विच करें तो हिन्दी कीबोर्ड आपके सामने आ जायेगा। हाँ आपकी विण्डोज़ में कीबोर्ड पहले से जुड़ा होना चाहिये।

मुलांचा संस्कृती कोष

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

************* पाँच मिनटोंमें संगणकपर हिंदी सीखें

-- पाँच मिनटोंमें संगणकपर हिंदी सीखें -- Also read some policy related issues here
पांच मिनटोंमें सीखो कम्प्यूटर पर हिंदी लिखना

बच्चों, अब तो स्कूलोंमें संगणक (कम्प्यूटर) सिखाया जाने लगा और तुममेंसे कईयोंके घर में भी होगा। तो क्या तुम जानते हो कि संगणक पर हिंदी सीखने के लिये एक युक्ति है जिसमें केवल आधा घंटा पर्याप्त है। वह भी अंग्रेजी टंकन-ज्ञान पर निर्भरता के बिना। और अगर पूरी बात कहूँ तो हरेक भारतीय भाषा सीखनेकी यही युक्ति है।

इस युक्तिका नाम है इनस्क्रिप्ट की-लेआउट अर्थात् संगणकके की-बोर्ड या कुंजीपटलपर चलनेवाला एक विशिष्ट वर्णक्रम जो पहली कक्षामें पढे वर्णक्रम जैसा ही है। लेकिन इसे सीखनेसे पहले तुम्हें बस एक बार अपने संगणककी परीक्षा लेनी है कि वह इसे सरलतासे जानता है या उसे थोडी आरंभिक कठिनाई होनेवाली है। और अगर इसे सरलतासे नही आता हो तो तुम उसे  यह युक्ति सिखा सकते हो।
तो पहले संगणककी परीक्षा इस प्रकार --
Go to start --; setting -- control panel -- Regional and Language -- click
एक खिडकी खुलेगी जिसके ड्रॉप-डाउन मेन्यू पर लिखा होगा - ENG. मेन्यूमें संसारकी बीसियों भाषाएँ मिलेंगी, और यदि हिंदी भी मिल जाय तो समझो तुम्हारा संगणक परीक्षा पास हो गया। अब हिंदीको क्लिक करो और अप्लाय तथा ओके के बटन भी दबाओ।। ऐसा करते ही संगणकके सबसे नीचेवाली पट्टीपर (टास्क-बार पर) EN दीखने लगेगा और क्लिक करनेपर हिंदी का ऑप्शन भी मिलेगा।
यह काम केवल सबसे पहली बार करना है -- बारबार नही।
 यदि तुम्हारे संगणकपर विण्डोज ७ या विणअडोज १० या लीनक्स सिस्टम है तो यह काम एक मिनटमें हो जाना चाहिये।
अब पहले वर्ड फाईल खोलकर फिर हिन्दी का ऑप्शन ले आओ और कोई भी कुंजी दबाओ तो हिंदी अक्षर मिलेंगे।
तो अब तुम्हारा संगणक पास हो गया और तुम इनस्क्रिप्ट विधीसे हिंदी सीखना आरंभ कर सकते हो।














[यदि संगणकमें विण्डो 7 की बजाय थोडा पुराना विण्डो Xp हो तो संगणक पास होनेमें दिक्कत हो सकती है। उस हालत में मुझे ईमेल भेजकर पूछना --leena.mehendale@gmail.com]
यह चित्र देखो जिसमें इनस्क्रिप्ट ले-आऊट बताया गया है।
इस लेआऊटमें वर्णोंका क्रम वैसे ही चलता है जैसा हमने कक्षा एकमें पढा होता है -- अर्थात् कखगघ..., चछजझ..., या अआइईउऊ... । अतः कुंजियाँ खोजनेकी दिक्कत नही है, जो अंग्रेजी सीखनेमें है । साथही इसमें तमाम व्यंजन दायें और स्वरकी मात्राएँ बाँये हाथसे लगानेका चलन है, जिससे अपनेआप एक लयसी बँध जाती है और थोडीही प्रॅक्टिसमें टंकनका काम तुम शीघ्र गतिसे कर सकते हो।

अब चिन्ता छोडो की तुम्हारे कुंजीपटलपर हिंदी स्टिकर तो लगे ही नही हैं -- बस निश्चिंत होकर यहाँ दिये पाठ पढो, कुंजीपटल देखो और सीखो यह युक्ति।

पहले दो मिनटोंमें सीखो बीस अक्षर
कख-गघ --- सामान्य कुंजीपटलके अंग्रेजी अक्षर K-I की जोडी देखो। यही कख और गघ हैं।
तथ- दध --- अगली दो कुंजियाँ L-O हैं जो तथ, दध के लिये हैं,
चछ- जझ --- अगली चछ,जझ की
टठ -डढ --- और उससे अगली टठ डढ की।
र ह --- क के बाँई ओर JU की कुंजीसे र-ह लिखते हैं और
पफ -बभ ---उससे बायें H-Y पर पफ, बभ हैं।
कुंजियोंकी ये जगहें समझकर आत्मसात् करनेको दो मिनट पर्याप्त हैं।
कठिन (भारी) अक्षरके लिये (अर्थात् खघ,थध,छझ,ठढ,फभ) शिफ्टके साथ कुंजी दबानी होगी।

अगले दो मिनटोंमें सीखो और बीस अक्षर

बाँईं ओर की पाँच कुंजी-जोडियों बाराखडी के दस स्वरोंके लिये हैं। इन्हे भी हमने पहली कक्षामें रटा था -- अआइईउऊएऐओऔअंअः

अ आ – अंग्रेजी अक्षर DE की जोडी
इ ई – FR की जोडी
उ ऊ – GT की जोडी
ए ऐ – SW की जोडी
ओ औ – AQ की जोडी
इनका क्रम ओऔ,एऐ,अआ,इई,उऊ रखा गया है क्योंकि इसमे सुविधा है। यहाँ अंग्रेजी अक्षर मैंने केवल पहली बार जगह बताने के लिये लिखे हैं, याद करने के लिये नही।
शिफ्टकुंजी के साथ लिखनेपर स्वतः स्वर लिखा जाता है परन्तु किसी व्यंजनकी मात्रा लगाने के लिये शिफ्ट कुंजी नही लगेगी।
इस प्रकार दस मात्राएँ तथा उन्हें लगाने का तरीका समझने के लिये अगले दो मिनट पर्याप्त हैं।

इन कुंजियोंको समझकर यदि हम प्रॅक्टिस करें --
काकी, चाची, दादी, ताई, ताऊ, बाबा, पापा, काका, चाचा, टाटा, दीदी -- तो इस कुंजी रचना की सरलता तत्काल मोह लेती है।
वैसे कुछ पाठ मैंने बनाये हैं जो तुकबंदी सहित हैं ताकि तुम उन्हें गाकर कंठस्थ कर लो।यहाँ उन्हें भी देख लो।







बचे अक्षरोंको एक बार ढूँढ कर समझ जा सकता है।
शिफ्टके साथ ५,६,७,८, अंकोंकी कुंजियोंसे ज्ञ त्र क्ष श्र तथा + की कुंजीसे ऋ लिखते हैं।
सबसे निचली पंक्ति में तिसरी कुंजीसे आरंभ कर म (शिफ्ट के साथ ण), न, व, ल (शिफ्ट के साथ मराठी, कन्नड आदि भाषाओंका ळ), स (शिफ्ट के साथ श), ष तथा अन्तिम कुंजीपर य (शिफ्ट के साथ बंगालीका दूसरा य) हैं।
ड से अगली कुंजी पर ञ है। शिफ्ट के साथ ह की कुंजीसे ङ लिखते हैं।
अनुस्वार के लिये अक्षर लिखने के बाद अंग्रेजी X की कुंजी लगाना। इसे शिफ्ट के साथ लगानेपर चंद्रबिंदु लगता है।
जरासे अभ्यास से ये याद हो जाते हैं।

संयुक्त अक्षर
संस्कृत के नियमानुसार व्यंजन में अ लगाकर उसे पूरा किया जाता है। जब कि यहाँ किसी भी कुंजीसे पूर्ण व्यंजन लिखा जाता है ताकि अ की मात्रा बारबार न लगानी पडे। अतः इस कुंजीपटलमें अ की कुंजी (Dअक्षर पर) लगानेपर वहाँ हलन्त लगता है और अगला व्यंजन उसमें जुड जाता है।
यदि लिखना हो क्रम तो क , हलन्त ,र ,म
परंतु कर्म लिखने के लिये क, र , हलन्त , म लिखा जायगा।
कृपा लिखनेके लिये क में ऋ की मात्रा (बिना शिप्ट के) और विसर्ग चिह्न के लिये शिफ्टके साथ - की कुंजी लगती है।
संगणक के सामने बैठकर लिखने लगो तो यह सब पढनेमें जितना समय लगता है उससे आधे समय में ही यह सब सीखा जाता है। नीचे शिफ्टकुंजी के बिना और शिफ्टकुंजी के साथवाले कीबोर्ड के चित्र अलग अलग दिखाये हैं।
















यदि संगणक ही परीक्षा में फेल गया तो तुम्हें उसकी मदद करनी पडेगी।
Regional and Language के मेन्यू में हिंदी न मिले तो उसे विण्डोजकी सीडी से लोड करना पडेगा। विण्डोज ऑपरेटिंग सिस्टम की सीडी में एक i386 फाईल होती है जिससे ये हिंदी फॉण्ट संगणककी समझ में आते हैं। यह फाइल विण्डोज की सीडी पर रखी होती है, लेकिन हर संगणक पर बाय डिफाल्ट लोड नही होती ।इसीलिये तुम्हें अलगसे डालनी पडेगी। यदि तुम्हारे पास सीडी न हो तो किसी दोस्तकी सीडीसे i386 फाईल को पेनड्राइव्ह पर ले आओ और उससे लोड करो।
तो बस सीखो हिंदी फटाफट और भेजो मुझे हिंदी ईमेल मेरा पता है -- leena.mehendale@gmail.com
यदि संभव हो तो इनस्क्रिप्ट सीखने का मेरा यह  विडियो भी देखो जो मैंने अपनी यूट्यूब sanskrittv पर रखा है।
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मंगलवार, 14 सितंबर 2010

आरती का सुयश

आरती का सुयश as told by her father Mohan Tambe
Dear Leenaji,
Thanks for your kind remarks. Today the environment appears to be more conducive towards getting the Inscript keyboard used.
It was thoughtful of the organizers to gift me an Inscript Keyboard at the function. I immediately installed it on my 12 yr old daughter's computer. I had as such briefed her about Inscript earlier, but because of lack of letters on the keyboard, she never had come around to using it. Now, to my surprise, she not only did started typing away, but soon summoned up the courage to write an email in Hindi and send it to her school friends. The school friends were quite surprised and this new skill o Avanti, soon became the talk of the class.
Today, we have to get the Inscript keyboard as part of the computer curriculum. This way, the student's will discover the simplicity and scientific structure of their languages as compared to English. They will be able to learn touch-typing much more easily on Inscript rather than QWERTY, because the prior was designed with that in mind. They will be able to type in the uniform way for all the Indian languages, leading to national integration. Above all they will have the pride on their languages, which will ensure that they will continue to co-exist in the future.
All this will happen, with the small steps which we take today. Let us urge the Maharashtra schools, to adopt this - now that the CM is also for it. Let us make them discover the difference.
Regards
Mohan Tambe
P.S. I would like to have another copy of your book.( संगणकाची जादुई दुनिया)
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शनिवार, 21 अगस्त 2010

CM speaketh The Times of India

The Times of India
Aug 21, 2010
'IT companies must develop software with Marathi fonts'

Read more: 'IT companies must develop software with Marathi fonts' - Mumbai - City - The Times of India http://timesofindia.indiatimes.com/city/mumbai/IT-companies-must-develop-software-with-Marathi-fonts/articleshow/6384070.cms#ixzz0xF8PJVAk

MUMBAI: With the Shiv Sena and the MNS constantly championing the Marathi cause, the Congress-led Democratic Front government has now joined the fray.

On Friday, chief minister Ashok Chavan asked IT firms to prepare a common software for Marathi fonts to give Marathi global recognition.

Speaking at an IT awards ceremony by the industries department on Friday, Chavan said, "We would like IT firms to develop softwares with Marathi fonts that will be globally accepted,'' adding that Marathi is used in all government and semi-government organisations as an official language.

The Sena led BMC will fund a Marathi unicode project to promote the use of the language within and outside the civic HQ. The unicode, developed by a private firm Shodh Marathicha, is a tool to help computers recognize the Marathi script.

सोमवार, 21 जून 2010

विभिन्न भारतीय भाषाओं में परस्पर आदान प्रदान की संभावनाएँ

विभिन्न भारतीय भाषाओं में परस्पर आदान प्रदान की संभावनाएँ
Given to Dr Manohar for Shabdsrishti
- मोबाइल 09821545288 -- प्रकाशित (कब --)
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साहित्य-निर्माण और साहित्य का पठन-चिंतन-मनन ये विकास के अभिन्न और मूलभूत अंग रहे हैं। जब लेखन-विद्याका अविष्कार नही हुआ था तब भी साहित्य निर्माण हो रहा था, जिसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण ऋग्वेद के रूप में मौजूद है। यह ऋग्वेद विश्वका सबसे प्राचीन उपलब्ध साहित्य है। भारतियोंके लिये यह गौरव की बात है कि यह अतिप्राचीन साहित्यकृती जो समाज-दर्शन और सामाजिक आचरण से भी संबंधित है, यह हम भारतवासियोंकी धरोहर है। इसमें प्रयुक्त भाषा जिसे संस्कृत या देववाणी कहा जाता है, वही तमाम भारतीय भाषाओंकी जननी है, यहाँ तक कि सिंहली, नेपाली, थाई, बर्मीज और इंडोनेशियाकी भाषाएँ भी संस्कृतसे जुडी हुई हैं। ऊर्दू का वाक्य-रचना–व्याकरण भी हिंदी जैसा ही है।
विश्वभरका साहित्य हमारे लिये खुली खिडकियोंसे आनेवाली मंद सुगंधित वायुलहरियोंकी तरह है लेकिन खास तौर पर भारतीय प्रकट होनेवाले साहित्य में हमारी अतिप्राचीन सांस्कृतिक धरोहर हमें उस साहित्यसे तुरंत एक अपनेपन का बोध कराती हे. जो कि हमारी साहित्यिक एकात्मता के लिये एक अटूट धागे के समान है। इसी कारण भारतीप भाषाओंके साहित्य के आदान प्रदान को एक विशेष महत्व और स्वीकार्यता है। मराठीकी किसी साहित्य-कृति में यदि महाभारत के यक्षप्रश्नों का उल्लेख आता हे तो उसे बांगला या कन्नड में अनूदित करते हुए यह नही सोचना पडेगा कि पाठकों को अलग से य़क्षप्रश्न की पार्श्वभूमि बतानी पडेगी या नही. यह हमारी भाषाओंकी एक बडी संपत्ती भी है व विभिन्न भाषाओंके साहित्यिक आदान–प्रदान और अनुवाद के लिये एक सशक्त मुद्दा भी। .............

सोमवार, 10 मई 2010

************* वापरावे

Let 1 + 1 become eleven

Let 1 + 1 become eleven (Checked on 15-08-2012)
-- Leena Mehendale
28.3.2010
This started in 1991. I was experimenting with the computers, especially for Marathi typing. Always intrigued by the fact that the key-board for English typing was not arranged as per the order of the alphabets and hence took long to memorize, I was almost resigned to the idea that I may not have further will-power to make equal efforts to learn marathi typing – again on a key-board that took long to memorize. The Marathi softwares then available in market, such as ShabdRatna and Akshar and all others had the same layout as the popular Godrej type-writer. No doubt it made life easy for those who were in the job of Marathi typist and could smoothly change over from typing on machine to typing on computers, it made the task difficult for newcomers like me.

I was, naturally, delighted when I was shown a new Marathi typing software GYST in which an additional ingenious key-board layout was available which made it very simple, nay, it did not necessitate any memorizing of the key-board. This was called the INSCRIPT layout. All I had to remember was my lesson of Marathi alphabets of standard 1, namely, ka, kha, ga, and so on. This layout had all consonants in serial order on right-hand side and all vowels, again in serial order on left-hand side. It was very easy to understand and remember this logic and soon I acquired a good speed for Marathi typing.

I was then on deputation to GoI as director Naturopathy and needed staff that could handle both English and Hindi. When I insisted that they learn my method, one clerk pointed out that he will need to pass the departmental typing exam that will have to be taken with typewriter on which this simplified key-board layout will not be available. I managed by assuring that I would certify that they knew Hindi typing and we will seek exemption for them. This method worked and I soon forgot that the regular problem needed a regular solution for thousands of staff rather than this personalized solution for my small staff at the Institute of Naturopathy.

Years passed, my jobs kept changing. Came 2007 and one of my clerks started telling me woes of having to attend Marathi typing class so that he could pass this departmental exam for Marathi typing without which his promotion prospects were restricted.. For practice, the class teacher used old typewriters as that was still the norm for examination. On the other hand, in office he was required to work on computers. I told him the disadvantages of practicing on typewriters. They need hard key strikes whereas the computer keyboard requires soft touch. So a person learning on typewriters is likely to damage the keyboard. Secondly he was deprived of the training for using the back-space key to delete, a facility rampantly used in computers. Without the practice to use backspace he was later on likely to need more time on computer. Most importantly, what about the much extra time he needed to spend on Marathi typewriter while he was definitely being deprived of a chance to learn Marathi typing with a simpler method using INSCRIPT layout? He just smiled – “madam, it is for my seniors to understand this and introduce Changes, I will simply follow what rules have been given to me for today”.

Then came my chance. Once, while temporarily holding charge of principle Secretary for Bhasha directorate I discussed elaborately with those officers. They were in-charge for conducting Marathi typing examinations for those clerks and typists and steno-typists who did not possess a certificate of proficiency in Marathi typing. At first they were aghast at the suggestion that they should allow typing examination on an instrument (computers) that allowed a chance to the examinees to correct their mistakes on-spot by using Back-space Key. The marks are deducted by counting mistakes made on a typewriter, so on a computer everyone would get 100 per cent marks! How will that evaluation be proper?

It took some time but I persuaded them to think of the fallacy in their worry. Yes, an examinee can correct mistakes then and there, but firstly, let us understand this as an asset. That is the habit he is going to need for all future typing on computers. Secondly, if his mistakes are more, he will lose time in correcting them. He should therefore, be evaluated by restricting his time for completing the exercise rather than by mistakes made. This means even the examiners will need a different orientation which can be given by explaining them this new method through an elaborate letter.

But the real question was why introduce a new system and assume the responsibility to organize an entirely new event? There were thousand small small apprehensions and as usual not much incentive to carry out something new. Still I have to give them credit that they agreed to discuss possible solutions and finally carried out the experiment successfully.

Their first worry was that while in earlier arrangement, the examinees were asked to bring their own typewriters, it would now become their worry to manage 5-6 computers for the day of examination. They were almost sure that they will not be able to manage this. Yet they agreed to request the divisional commissioner office to spare 5 computers for the day of the examination. It turned out that the commissioner office or a college which was selected for venue of the examination were readily aggreable to arrange for computers for these examinations. With two batches of examinations having been held with computers, we can assume that holding Marathi typing examination on computers has become a norm. and this new system will survive.

We must congratulate our Bhasha Directorate because so far Maharashtra is the only state to conduct Marathi typing examination on computers. With that comes the possibility that those who have to learn Marathi typing will learn it by using the choice of INSCRIPT layout rather than the normal typewriter layout. This will make the learning far easier. All other States as well as Hindi direcorate for central govt. conduct departmental typing exam on typewriters and thus will remain far behind in learning this simpler method. Incidently, this layout is available for all Indian scripts and is exactly the same for all.

Most of IAS officers can type English on computers and hardly any of them can type Marathi. Some have learnt the trick of typing Marathi by using Roman keys and using google-transliteration facility that itself converts the Roman into devnagari script. They call it Unicode method or phonetic. In this method you write “Tum aaj jaldi ghar  jana” and it will be rendered in Devnagari on the screen. They find it easy as they have willi-nilli long back learnt English key-board. But it is a bad substitute and all the clerical staff cannot become comfortable with this method. The INSCRIPT layout is even more easier to understand and adopt. Only when you try it you realise how easy it is. The ism software for Marathi available on all computers in all govt offices has the option of both Typewriter layout and the INSCRIPT layout. Senior officers must spend just half an hour to see for themselves how easy the INSCRIPT layout is. Then they can guide their staff properly by telling them to practise with this layout rather than the time-consuming traditional layout.

There are often complaints that No website of Maharashtra govt departments is readable in Marathi. Similar are the complaints about the Hindi version of the GOI websites. This has even become a sore point with the RTI Commissioner. The reason is simple. All typing is done with DVBTTSurekh font which being non-standard, is not internet compatible. Making pdf files is once again a bad option.To be internet compatible we need unicode standard fonts such as Mangal for Hindi and Marathi. Similar INSCRIPT fonts exist for all indian languages on windows7 opperating system. On all new govt computers this font is available but it needs typing by INSCRIPT method. As senior officers fail to guide their staff to this requirement, we see govt websites not working properly with Marathi.

The desk officers of GAD's desk 16-B have done a good job. On homepage of GAD's site there is a link for desk 16-B ( BC cell). On that is uploaded an article on “how to learn Marathi typing in 15 minutes”, and a video clip for demonstration. A small effort, but it was worth it considering the number of staff who approached the desk officer for more enlightenment.

If seniors persue their own separate methods or priorities and leave the juniors to take care of routine govt programs, we get a value worth one plus one which is often 2 units. But if they can have a periodical dialogue, a common purpose of learning and acting together for solving problems through new technologies and new methodologies, then we can get a value of one plus one equalling to eleven units. It is only with such efforts we can achieve something for Hindi, Marathi and other Indian languages that are the Rajbhasha of their respective states.
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Written in this golden-jubilee year of Maharashtra.

बुधवार, 31 मार्च 2010

शासनाची संकेत-स्थळे मराठीत यावीत म्हणून

शासनाची संकेत-स्थळे मराठीत यावीत म्हणून
--लीना मेहेंदळे
दि. 29.3.3010
महाराष्ट्र शासनाची संकेतस्थळे मराठीत नाहीत किंवा असली तरी नीट उघडत माहीत अशी तक्रार वारंवार ऐकायला मिळते. शासनाचे पोर्टल महान्यूज हे मात्र व्यवस्थित उघडते. कारण पोर्टलसाठी सर्व डेटा एण्ट्री युनीकोड स्टॅण्डर्ड वापरणा-या सॉफ्टवेअरच्या माध्यमातून केली जाते. हे काय गौडबंगाल आहे आणि किती कठिण किंवा सोपं आहे आणि आपापल्या विभागाच्या संकेतस्थळासाठी वापरता येईल का ही चर्चा सचिव स्तरावरील अधिकारी करत नाहीत कारण हे काम अति फालतू व त्यांच्या वरिष्ठ पातळीला शोभेसे नाही अशी त्यांची समजूत असावी.
खरं तर हे करणं खूप सोपं आहे. आधी यातले तांत्रिक नुद्दे समजावून घेऊ या.
मुद्दा 1 – स्टॅण्डर्ड हवेच.
संकेतस्थळावर म्हणजे इंटरनेटवर जाणारी माहिती जगभर
जाणार म्हणून ती स्टॅण्डर्डमधेच असली पाहिजे. इंग्रजीत टाइप केलेले सर्व कांही आस्की किंवा युनीकोड यापैकी एका स्टॅण्डर्डमधे असते त्यामुळे ते जगभर व्यवस्थित दिसते. मराठीत तसे आपोआप होत नसून त्यासाठी प्रयत्न
करावे लागतात. जे युनीकोड स्टॅण्डर्ड वापरून लिहिले नसेल ते नीट दिसणार नाही.
मुद्दा 2 – युनीकोड स्टॅण्डर्ड म्हणजे काय.
इंग्रजीप्रमाणे मराठी फॉण्टसाठी पण स्टॅण्डर्ड हवे. ते भारत सरकारने 1991मधेच तयार केले, त्याचे नांव इस्की, पण दुर्दैवाने ते लागू करण्यांत सरकारची इच्छाशक्ति कमी पडली. ज्या सीडॅकने हे तयार करण्यांत पुढाकार घेतला त्यांनीच आपले फॉण्ट व्यापारी तत्वावर विकून पैसा मिळवण्यासाठी ते स्टॅण्डर्ड बाजूला ठेवले. याचा तोटा देशाला अजूनही होत आहे कारण ते फॉण्ट इंटरनेटवर चालत नाही. मात्र त्या फॉण्टमधे सीडॅकने एक चांगली गोष्ट केली, ती अशी की फॉण्ट बनवतांना त्यांनी की-लेआउटचा पण विचार केला. आधीपासून टायपिंग
करणा-यांच्या सोईसाठी मराठी टाइपरायटरसारखाच लेआउट ठेवला असला तरी सोबत अआइई...कखगघ... असा इन्स्क्रिप्ट नांवाचा एक सरळसोट लेआउटपण दिला. या एकूण सॉफ्टवेअरच्या किंमती भरमसाठ ठेवल्याने व त्याची माहिती अजिबात न दिल्याने तो लेआउट लोकापर्यंत पोचलाच नाही, पण तो खूप सोपा आहे.

शासनांत मराठी टायपिंगसाठी आपण बहुतेक वेळी सीडॅकने तयार केलेला DVBTTSurekh हा फॉण्ट वापरतो. (कारण त्याचे सॉफ्टवेअर शासनाने सीडॅककडून विकत घेतले आहे) तो वापरतांना पण आपल्याजवळ लेआउटचा पर्याय असतो व आपण इन्स्क्रिप्टचा पर्याय निवडून सोपेपणाने मराठी टाइपिंग करू शकतो हे शासनांत कुणाला फारसे माहीत नाही.

2000 च्या सुमारास जागतिक युनीकोड कन्सॉर्शियमने युनीकोड स्टॅण्डर्ड ठरवायला घेतली तेंव्हा कुणीतरी हा इन्स्क्रिप्टच्या सोपेपणाचा मुद्दा लक्षांत आणून दिल्याने सुदैवाने तोच की-लेआउट भारतीय भाषांसाठी स्टॅण्डर्ड ठरवला गेला व अक्षराच्या वळणासाठी मंगल हा फॉण्ट स्टॅण्डर्ड ठरला. अजूनही शासनाकडील सर्व संगणकांवर युनीकोड स्टॅण्डर्डबरहुकूम मराठी फॉण्ट मंगल उपलब्ध नाहीच. तसेच अजूनही जागरूक गि-हाइक नसेल तिथे विक्रेते हा फॉण्ट देत नाहीत. अशावेळी DVBTTSurekh हा फॉण्टच वापरला जाणार व तो इंटरनेटवर चालणारच नाही. पण जिथे मंगल फॉण्ट आहे तिथे तो इन्स्क्रिप्ट लेआउटप्रमाणेच टाइप करावा लागतो.

थोडक्यांत आपल्याकडे युनीकोड फॉण्ट असेल तरच ते टायपिंग इंटरनेटवर जाऊ शकेल पण त्या टाइपिंगसाठी इन्स्क्रिप्ट लेआउट वापरायला हवा. आणि युनीकोड फॉण्ट नसेल तरी DVBTTSurekh वर नव्याने इन्स्क्रिप्ट लेआउट शिकून घ्यायला काहीही श्रम पडत नाहीत. ते शिकून सवयीचे झाले तर पुढेमागे इंटरनेटवर माहिती टाकण्यासाठी ही सवय उपयोगी पडते.

शासनाचे सुमारे नव्वद टक्के अधिकारी हे बारकावे जाणत नाहीत म्हणून शासनाची मराठी संकेतस्थळे नीट उघडत नाहीत. तसेच शासनांतील अधिकारी व कर्मचारी यांनी हा सोपा इन्स्क्रिप्ट लेआउट शिकून कार्यक्षमता वाढवावी हा आग्रहही कुणी धरत नाही. त्याऐवजी आउटसोर्सिंगचा पर्याय निवडणे हे जास्त कार्य़क्षमतेचे लक्षण मानले जाते. त्यांत जास्त पैसा ओतावा लागत असल्याने ते जास्त ग्लॅमरसदेखील दिसते.

इतके असूनही ज्यांना असे वाटत असेल की शासनाचा पैसा निरर्थक ग्लॅमरस कामावर जाऊ नये त्यांना आग्रह धरता येईल की शासनात आलेल्या सर्वांना इन्स्क्रिप्ट लेआउट शिकणे आवश्यक ठरवावे. किवा असा आग्रह धरता येईल की शाळेतील मुलीमुलांना इन्स्क्रिप्ट लेआउटवर मराठी शिकवावे. असे कांही केले तरच पुढील काळांत इंटरनेटवर मराठी वेगाने जाऊ शकेल आणि शासकीय संकेतस्थळावर पण मराठी दिसू लागेल.

जाता जाता एकच दिलासा .. आपण कमी पडत असलो तर इतरही कमी पडत आहेत. इतर प्रांतातही त्यांच्या भाषिक संकेतस्थळाबाबत याच समस्या आहेत. तिथेही युनीकोड सम्मत फॉण्टसाठी सोपा इन्स्क्रिप्ट लेआउट वापरावा लागतो, आणि तिथेही कुणी या बाबीकडे लक्ष न दिल्याने त्यांचे लेखनही DVBTT मालिकेतील फॉण्ट टाइपरायटर लेआउट वापरून लिहिले जाते. खुद्द केंद्र शासनात हिंदीबद्दल हेच प्रश्न, हीच उदासीनता आहे आणि त्यांच्याही प्रश्नाची उकल हीच आहे. त्या सर्वांची समस्या एका कारणाने जास्त आहे. आपल्या शासकीय टायपिंग परीक्षा पूर्वी टाइपरायटरवर होत असत, आता त्या संगणकावर होतात त्यामुळे इन्स्क्रिप्ट लेआउट शिकायला एक प्रोत्साहन तयार झाले. पण त्यांच्या परीक्षा अजूनही टाइपरायटरवरच होतात. त्यांना कुठले प्रोत्साहन त्यामुळे त्यांची समस्या आपल्यापेक्षा जास्त काळ चालेल. अर्थात त्यांनी आउटसोर्सिंगचा पर्याय नाही वापरला तर.
ज्यांना प्रांतासोबत देशाचीही पर्वा आहे त्यांची जबाबदारी या माहितीमुळे वाढणार आहे.
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महाराष्ट्रातील संगणक संस्कृती आज आणि उद्या

महाराष्ट्रातील संगणक संस्कृती आज आणि उद्या
लीना मेहेंदळे
४.४.२०१०
संगणक म्हणजे दिलेल्या निर्देशाबरहुकूम उपलब्ध माहितीची छाननी करून निष्कर्ष काढू शकणारे यंत्र. जगभर मान्य असलेली ही व्याख्या पाहिली तर फार पुरातन काळातले साधे बेरीज करू शकणारे यंत्र देखील संगणक ठरते. पण आकड्यांची दशांश पद्धत द्बिअंशी पद्धतीत बदलून व इलेक्टानिक उपकरणांच्या सहाय्याने भाषा ते गणित असे आदानप्रदान करू शकणारे यंत्र या अर्थाने संगणकाचा विकास 1945 म्हणजॆ द्बितीय महायुद्ब संपता संपता झाला.

याच्या पूर्वासुरीचा आविष्कार म्हणजे बिनतारी माध्यमातून संदेश पाठवणे- म्हणजे आपली चिरपरिचित टपाल-तार खात्याची तार पाठण्याची पद्धत. त्या आविष्कारामधे जगदीशचंद्र बसु यांच्यासारखे भारतीय वैज्ञानिक होते ही अभिमानाची गोष्ट आहे पण हा वैत्रानिक सहभाग फक्त अपवाद म्हणावा लागेल.

संगणकाची- जागतिक स्तरातील वाटचाल व भारतीय स्वातंत्र्याची वाटचाल एकाच सुमारास झाली. संगणक आधारित जेवढी कामे जगभरात होतात ते करणा-यामधे भारतीय कंपन्यांचा मोठा वाटा आहे व त्याचा फायदा भारताला निश्चितपणे होतो मात्र संगणकात जे जे नवीन घडते त्यात काम करणा-या भारतीय कंपन्याना अन्वेषकाता व उद्योजकता या दोन बाजूनी तपासले तर भारत फक्त दुस-यामधे आहे – पहिल्यामधे कुठेही नाही .

अशा भारताचा प्रगतीमधील मानबिंदू जो महाराष्ट्र, तिथे संगणक-संस्कृती कितपत रुजली -- 1960 ते 2010 वाटचाल कशी होती आणि 2010 ते 2060 ही वाटचाल कशी होईल याचा उहापोह करतांना संगणक, संगणक-संस्कृती, आणि संगणकीय मराठीची संस्कृती असे तीन भेद करून ही मांडणी करावी लागेल. संस्कृती कशी घडते या प्रश्नाला माझे उत्तर असे की एखादे तंत्रज्ञान सामान्य माणसापर्यत पोहोचून त्यांच्याकडून आत्मसात केले जाते तेंव्हा ती संस्कृती बनते. सामान्य माणूस संगणकाला वेगाने आत्मसात करीत आहे, पण त्यांत मराठी टक्का खूप कमी आहे.

संगणक विविध प्रकारची कामे करतो – त्याला हरकाम्या हे वर्णन चपखल ठरते. ढोबळ मानाने त्याची तीन तंत्र असतात – जडवस्तु-प्रणाली (हार्डवेअर), आज्ञावली (सॉफ्टवेअर) व आदानप्रदानाचे तंत्र (म्हणजे आपण आदेश कसे द्यायचे व त्याने परिणाम कशा पध्दतीने आपल्यासमोर ठेवायचे.

जडवस्तूमधे संगणकाची – पाटी (मॉनिटर) पेन्सिल (कीबोर्ड + माऊस ही दोन यंत्र), आणि संगणकाचा कारभारी डबा (सीपीयू) एवढी सामुग्री येते. कारभारी डब्याच्या आत एका मदरबोर्डवर संगणकाचा मेंदू (प्रोसेसर), मेंदूची स्वतःची पाटी (रॅम), संग्राहक -- (हार्ड डिस्क), विलग-संग्राहक (जसे की पेन ड्राइव्ह, सीडी, फ्लॉपी डिस्क इत्यादि), त्यांना चालवणारे ड्राइव्ह, संगणकाच्या कामाची सुरूवात करून देणारी बायोस नांवाची वेगळी चिप, जोडणाच्या तारा व केबल्स अशी उपकरणे असतात. या सर्व जडवस्तूंचे आकार – त्यांना जोडणा-या केबल्स, प्लग, सॉकेट्स इत्यादी सर्व बाबींचे स्टॅण्डर्डायझेशन करून IBM कंपनीने 1980 च्या आसपास मोठ्या प्रमाणावर संगणकांचे प्रॉडक्शन सुरू केले. ही स्टॅण्डर्डस् त्यानी सर्वांना जाहीर करून टाकल्याने इतरही उत्पादक कंपन्यानी हीच स्टॅण्डर्डस वापरली यामुळे संगणकाचे स्पेअर पार्टस् मिळणे, एकमेकांचे वापरले जाणे, यासारख्या सोई निर्माण होऊन संगणकाचा हार्डवेअरचा खप वाढला - अशा त-हेने संगणक संस्कृती सामान्य माणसापर्यत पोचवण्याचा पहिली टप्पा पार पडला.

हा हरकाम्या करू शकतो त्या कामाची यादी करायची तर टायपिंग, हिशोब ठेवणं, जगभर संदेश पोहोचवणं, चित्र, गाणी, व्हिडियो तयार किंवा एडिट करणं, फिल्म उद्योगात, बुकिंग-क्लार्क म्हणून, माहितीचा विश्लेषक म्हणून, अशा विविध प्रकारांनी संगणक काम करतो.

शासनांत संगणक संस्कृती यावी म्हणून केंद्र सरकारने 1981—82 मधे NIC नांवाचा एक नवा विभाग तयार करून प्रत्येक जिल्ह्याच्या ठिकाणी संगणकावर काम होण्याच्या दृष्टीने एक एक संगणक-कोआर्डिनेटर नेमला-- त्याआधी फक्त रेलवेच्या काही मोजक्या आफिसेसमधेच जुन्या पद्धतीचे अवाढव्य आकारचे संगणक होते व पुढील कामाची दिशा ठरवण्याचे प्रयत्न फक्त रेलवे विभागात होत होते. तसेच शासनाकडील खूप मोठा डाटा साठवण्याच्या दृष्टीने परम नावाचा सुपर संगणक बनवण्याची योजना हाती घेऊन केंद्र सरकारने पुण्यांत सीडॅक या संस्थेची स्थापना केली. NIC व सीडॅक हे दोन्ही दूरदृष्टी ठेऊन घेतलेले व दूरगामी परिणाम देणारे टप्पे होते. मात्र माझ्या मते त्यांची वाटचाल तेवढ्या समर्थपणे झाली नाही.

सीडॅकमधे 16 मेगाबाइट साठवण क्षमता असलेला सुपर-संगणक तयार करुन अंतरराष्ट्रीय बाजारपेठेत मानाचे स्थान मिळवू हे स्वप्न रंगवले, मात्र ते पूर्ण करता आले नाही.(त्या काळातल्या संगणकांना 1 मेगाबाइटची साठवण-क्षमता खूप वाटत असे, आतातर 16 मेगाबाइटची साठवण-क्षमता अति क्षुल्लक मानली जाईल.)

त्याऐवजी सीडॅकला यश मिळाले ते त्यांच्याकडील तुलनेने छोट्या असलेल्या एका विभागाने केलेल्या कामामुळे -- ते म्हणजे संगणकावर भारतीय भाषेत व्यवहार करता यावा यासाठी विकसित केलेले सॉफ्टवेअर. इंग्रजीप्रमाणे मराठी फॉण्टसाठी पण स्टॅण्डर्ड हवे. ते भारत सरकारने 1991 मधेच तयार केले, त्याचे नांव इस्की, पण दुर्दैवाने ते लागू करण्यांत सरकारची इच्छाशक्ति कमी पडली. ज्या सीडॅकने हे स्टॅण्डर्ड तयार करण्यांत पुढाकार घेतला त्यांनीच आपले फॉण्ट व्यापारी तत्वावर विकून पैसा मिळवण्यासाठी ते स्टॅण्डर्ड बाजूला ठेवले. याचा तोटा देशाला अजूनही होत आहे कारण ते फॉण्ट स्टॅण्डर्ड नसल्याने इंटरनेटवर चालत नाहीत. तसेच त्यांची किंमत भरमसाठ ठेवल्याने (इंग्रजी फॉण्ट फुकट आणि यांची किंमत 15000 रुपये) कुणी ते घेईनात. त्यामुळे महाराष्ट्रांत संगणक संस्कृती रुजायला सुरुवात झाली तीच मुळी मराठीला खड्यासारखे बाजूला ठेऊन. याचा एक अप्रत्यक्ष परिणाम असा पण झाला की संगणक, वैज्ञानिक झेप, एकविसाव्या शतकाला मुठीत पकडणे या सर्वांचे नांव घेत सर्व शाळामधे पहिलीपासून इंग्रजी अनिवार्य करण्यांत आले तर कॉलेजमधेही मराठीऐवजी आय्.टी.चा पर्याय मान्य झाला.

मात्र त्या सॉफ्टवेअरमधे सीडॅकने एक चांगली गोष्ट केली होती. ती अशी की फॉण्टच्या जोडीला त्यांनी की-बोर्डाच्या लेआउटचा पण विचार केला. आधीपासून टायपिंग करणा-यांच्या सोईसाठी मराठी टाइपरायटरचाच लेआउट ठेवला असला तरी सोबत इन्स्क्रिप्ट नांवाचा अआइई...कखगघ... असा एक सरळसोट लेआउटपण दिला जो शिकायला खूपच सोपा आहे. या एकूण सॉफ्टवेअरच्या किंमती भरमसाठ ठेवल्याने व त्याची माहिती अजिबात न दिल्याने तो लेआउट लोकांपर्यंत पोचलाच नाही,

एकीकडे सीडॅकची ही त-हा तर जिल्ह्यांजिल्ह्यांत जे NIC कोऑर्डिनेटर्स नेमले त्यांची दुसरी त-हा. त्यांचे काम ठरवले डेटा-कलेक्शन व डोटा-प्रोसेसिंग. पण त्यांच्याकडून प्रत्यक्ष काय काम झाले ते गुह्यच राहिले. मी 1983 मधे सांगली जिल्हापरिषदेवर आले तेंव्हा माझा आग्रह होता की त्यांनी शासकीय अधिकारी व कर्मचारी यांना प्रशिक्षण देऊन स्थानिक पातळीवरच संगणकाद्वारे विवेचन, मूल्यांकन आणि नीति-निर्धारण कसे करतात ते शिकवावे. पण त्यांची भूमिका डेटा-ग्रॅबिंगची होती हे माझ्या लक्षांत आले. ग्रॅबिंगची भूमिका असल्यावर ट्रेनिंग कसे देणार. तेंव्हापायून आतापर्यंत मीच स्वतः थोडे शिकून घेऊन आपल्या स्टाफला कांही शिकवायचे हे धोरण ठमवले. त्याचा मला वैयक्ति पाकळीवरहू खूप फायदा झाला.

ग्रॅबिंगच्या भूमिकेतून 1985 मधे NIC ने मोठ्या प्रमाणावर संगणकाचे डम्ब टर्मिनल्स घेऊन जिल्हाधिकारी व इतर कार्यालयांना पुरवण्याचा सपाटा लावला. तुम्ही डेटा-एण्ट्री करून तो डेटा आमच्याकडे सोपवा -- मग आम्हीच बुद्धिमान असल्याने त्याचे काय करायचे ते आमचे आम्ही बघून घेऊ अशी काहीशी अहंकाराची वागणूक त्यांत होती. परदेशांत दुकानांत दर पंधरा दिवसांनी सेल्सगर्ल बदलतात – तिथे ही डम्ब टर्मिनल्सची संस्कृती ठीक असते. हॉटेल्स चे ऱूम-बुकिंग, एअरलाइनचे चेक-इन काउंटर, रेल्वे रिझर्वेशनची काउंटर यासारख्या कामांना डम्ब टर्मिनल्स चालतात. पण शासनांत गांव-पातळीवरील तलाठी-ग्रामसेवकापासून वर पर्यंत एक-एक बलस्थान तयार झालेले असते. ते उपयोगाचे पण असते कारण थोड्या प्रशिक्षणाने त्यांचा चांगला वापर करता येतो. पण NIC च्या संगणक-धोरणामधे त्यांचा वापर फक्त मजूर म्हणून होणार होता. म्हणूनच सुरुवातीला काही वर्ष महसुली रेकॉर्डचे संगणकीकरण करण्याचे प्रयत्न अयशस्वी झाले.

आजही शासनांत स्टाफ ट्रेनिंगचा मुद्दा दुर्लक्षितच आहे.

1991 उजाडता- उजाडता संगणकाच्या किंमती निम्म्याने उतरल्या. आता तर डम्ब टर्मिनल्सचा आग्रह खूप चुकीचा होता. मग निर्बंध झुगारून काही विभागांनी इंटेलिजण्ट टर्मिनल्स म्हणजेच पीसी घेण्यास सुरुवात केली.

शासनांत संगणकाचा इपयोग किती
शासनांत संगणक संस्कृतीची खरी सुरुवात तेंव्हापासून झाली असे म्हणता येईल. तरीपण हा उपयोग फक्त टाइपरायटरचे काम करण्यापुरताच मर्यादित राहिला. संगणक म्हणजे ग्लोरिफाइड टाइपरायटर, अशीच समजूत आहे. अजूनही कित्येक कार्यालयांत संगणक व टाइपरायटरच्या किंमतींची तुलना करून संगणक घेण्याची परवानगी नाकारली जाते. सरकारांत संगणकाचा खरा उपयोग व्हायला हवा तो असलेल्या माहितीची सारणीबद्ध मांडणी करून (उदा. एक्सेल हे सॉफ्टवेअर वापरून) निष्कर्ष काढण्यासाठी. शासरीय कामांची विभागणी केल्यास चाळीस टक्के साणी विवेचन, तीीस टक्के टायपिंग व तीस टक्के इतर बरीच कामे अशी विभागणी होईल. पण संगणकाचा असा वापर हवा हे फक्त दहा टक्के सचिवांना कळतो व खालील स्टाफमधे तर याबाबत अज्ञानच आहे. इतर कामेमधे ईमेल, इंटरनेट सर्च, वेबपेजिंग (फक्त अपलोड करणे, डिझाइनिंग पण नाही), प्रेझेंटेशन, व तयार सॉफ्टवेअर वापरणे (उदा पगारपत्रकासाठी टॅली हे पॅकेज) अशा बाबी येतात.

शासनांत संगणकाचा इपयोग मराठीसाठी किती
पण टाइपरायटर म्हणून तरी संगणकांचा उपयोग मराठीसाठी किती प्रभावीपणे होतो. जे इंग्रजी टायपिस्ट किंवा स्टेनो म्हणून लागले, त्यांनी मराठी टायपिंगची परीक्षा पास झाली पाहिजे असा शासन-निर्णय 1985च्या आधीपासून आहे. संगणक नव्हते तेंव्हा मराठी टायपिंग शिकणे हा वैतागच होता, कारण इंग्रजीसारखाच मराठी टाइपरायटरचा की-बोर्ड लेआउट हाही उलटसुलट पद्धतीनेच असतो व त्याची परीक्षा पास होण्यासाठी सहा-आठ महिने क्लास लाऊन, दोन-दोन तास प्रक्टिस करावी लागते. शासनांत इन्क्रीमेट हवे असेल तर भाषा संचालनालयाची मराठी टायपिंग परीक्षा पास झालीच पाहिजे.

1960 ते 1990 या पिढीतील इंग्रजी टायपिस्ट किंवा स्टेनो यांनी मराठी टायपिंग संस्थांमधे क्लास लावून कधी कर्तव्यबुद्धीने त्या परीक्षेचे सर्टिफिकेट मिळवून घेतले तर कुणी सूट मिळावी म्हणून प्रयत्नांत राहिले. कांहींनी परीक्षा न देताच विभागातच आपले इन्क्रीमेंट मॅनेज केले तर कुणाला त्यांतही रिकव्हरीचा झक्कू लागला.

पण 1991 पासून सीडॅकचे सॉफ्टवेअर उपलब्ध होते, (जिस्ट, लीप-ऑफिस व इझम असे एकाहून एक प्रगत टप्पे) व त्यांच्या सर्व की-लेआउटमधे इन्स्क्रिप्ट लेआउटचा पर्याय होता. म्हणजेच मराठी वर्णमालेच्या क्रमाप्रमाणे अआइई.... कखगघ... असाच तो कीबोर्ड लेआउट असल्याने टायपिंग शिकणे शक्य व सोपे होते. ही माहिती वरिषठांना नव्हती, कारण मराठीसाठी संगणकांत कांय कांय आहे हे जाणून घेण्याची जबाबदारी कुणाची ते ठरलेले नाही. म्हमून मग शासकीय स्टाफला कुणी मार्गदर्शन केले नाही. स्वतः भाषा- संचालनालयामधे ही माहिती नसल्याने थेट 2009 पर्यंत संगणकावर परीक्षा घ्याव्यात हा विचारच त्या कार्यालयांत झाला नाही. माझ्याकडे त्या विभागाची जबाबदारी आल्यावर आता मात्र तिथल्या परीक्षा संगणकावर होऊ लागल्या आहेत आणि काही काळातच इन्स्क्रिप्ट लेआउट वापरल्यास ही परीक्षा अगदी सोपी जाते हे सर्वांना समजेल असा माझा आशावाद आहे. जोपर्यंत परीक्षाच टाइपरायटरवर होत्या तोपर्यंत संगणकावरील ही सोपी पद्धत शिकून टायपिंगच्या परीक्षेत कांही फायदा नव्हता पण सूट मिळण्यासाठी फायदा नक्कीच झाला असता.

जे कर्मचारी चतुर्थ श्रेणीमधून प्रमोशन मिळून क्लार्क झाले त्यांनी देखील टायपिंग टाळण्याचा प्रयत्न केला, त्यांना ही सोपी पद्धत दाखवली पाहिजे.

तसेच शासनांत नवीन क्लार्क भरती करतांना MSCITया शासनमान्य संस्थेची संगणक-परीक्षा पास व्हावे लागते, त्यासाठी तिथे क्लास लावले जातात. पण तिथेही अजून पूर्वीच्याच वेळखाऊ पद्धतीने मराठी टायपिंग शिकवले जाते. नुकतेच माजी सैनिक कल्याण कार्यालयामार्फत ग्रामीण मुलांना संगणकावर इन्स्क्रिप्टच्या सोप्या पद्धतीने मराठी टायपिंग शिकवण्याचे वर्ग सुरू केले आहेत ते किती यशस्वी होतात ते पहायचे.

थोडे विषयांतर करून एक गोष्ट नमूद करावीशी वाटते. नुकतेच एका कर्नाटक काडरच्या मित्राकडून कळले की तिथेही हाच प्रश्न आहे, तिथल्या कन्नड टायपिंगच्या परीक्षा अजून टाइप- रायटरवरच होतात त्यामुळे इन्स्क्रिप्टच्या सोप्या पद्धतीने कन्नड टायपिंग शिकण्याचा पर्याय तिथेही चालत नाही. तोच प्रकार राजभाषा विभागाच्या हिंदी टायपिंगच्या परीक्षेचा आणि जवळपास देशांत सगळ्याच राज्यांमधील शासकीय टायपिंग परीक्षांचा.
या मुद्याला अति वरिष्ठ पातळीपर्यंत कोण उचलणार, तो दबावगट पण निर्माण करावा लागेल.

शासनामधे संगणक संस्कृती किती रुजली
आज शासनामधे संगणक संस्कृती किती रुजली याचे उत्तर बरेचसे दुखावणारे आहे. अधिका-यांपैकी नव्वद टक्के फक्त ईमेलपुरते संगणक वापरतात आणि तेवढ्यासाठी इंग्रजीचा की-लेआऊट उलटसुलट असूनही त्यांनी शिकून घेतलेला असतो. पण मराठीचा इन्स्क्रिप्ट हा अत्यंत सोपा की-लेआउट शिकून घेऊन मराठी वेबसाईट करण्याचे तसेच एक्सेलची सोय वापरून विभागाच्या कामगिरीचे विवेचन व नीती-निर्धारण करायचे या दोन बाबी त्यांना माहीतच नाहीत. त्यांच्या स्टाफमधे मराठी आणि इंग्रजी टंकलेखक येणारा एखादा क्लार्क असावा आणि त्याला प्रेझेंटेशन तयार करता आले तर छान. पण स्टाफचे ट्रेनिंग होण्याची जबाबदारी त्यांची नाही हाच बहुतेक सर्व वरिष्ठ अधिका-यांचा समज आहे. त्यामुळेच स्टाफमधे टंकन येणारे आणि न येणारे असा भेदही आहे. ज्यांना येत नाही त्यांनी तरी ही सोपी पद्धत शिकावी असं त्यांना कोण सांगणार.

यामुळे शासनाचे जिव्हाळ्याचे दोन कार्यक्रम रेंगाळले आहेत. माहिती अधिकाराचा आणि ई-गव्हर्नन्सचा.

शासनाची संकेतस्थळे व मराठी
माहिती अधिकाराखाली शासनाच्या संकेतस्थळावर प्रत्येक विभागाने माहिती उपलब्ध करून द्यायची आहे. संकेतस्थळाची इंग्रजी प्रत नीट उघडते पण मराठी प्रत मात्र नीट उघडत नाहीत मग तक्रार ऐकावी लागते. याचे कारण की शासनांत मराठीसाठी वापरले जाणारे सर्व सीडॅक- फॉण्ट नॉन-स्टण्डर्ड असल्याने ते इंटरनेटवर चालत नाहीत. भारतीय इस्की स्टण्डर्ड न वापरले जाण्यामधे हे सीडॅकचे धोरणच कारणीभूत होते.

2000 च्या सुमारास जागतिक युनीकोड कन्सॉर्शियमने युनीकोड स्टॅण्डर्ड ठरवायला घेतली तेंव्हा कुणीतरी हा इन्स्क्रिप्टच्या सोपेपणाचा मुद्दा लक्षांत आणून दिल्याने सुदैवाने जागतिक स्तरावर तोच की-लेआउट भारतीय भाषांसाठी स्टॅण्डर्ड ठरवला गेला व अक्षराच्या वळणासाठी मंगल हा फॉण्ट स्टॅण्डर्ड ठरला. अजूनही शासनाकडील सर्व संगणकांवर युनीकोड स्टॅण्डर्डबरहुकूम मराठी फॉण्ट मंगल उपलब्ध नाहीच. तसेच अजूनही जागरूक गि-हाइक नसेल तिथे विक्रेते हा फॉण्ट देत नाहीत. अशावेळी सध्यातरी सीडॅकचा DVBTTSurekh हा फॉण्टच वापरला जातो व तो इंटरनेटवर चालत नाही. जिथे मंगल फॉण्ट आहे तिथे तो इन्स्क्रिप्ट लेआउटप्रमाणेच टाइप करावा लागतो त्याचे सोपेसे प्रशिक्षणही आपण स्टाफला दिलेले नाही हे सर्व सचिव विसरतात.

थोडक्यांत आपल्याकडे युनीकोड फॉण्ट असेल तरच ते टायपिंग इंटरनेटवर जाऊ शकेल पण त्या टाइपिंगसाठी इन्स्क्रिप्ट लेआउट वापरायला हवा. आणि युनीकोड फॉण्ट नसेल तरी DVBTTSurekh वर नव्याने इन्स्क्रिप्ट लेआउट शिकून घ्यायला काहीही श्रम पडत नाहीत. ते शिकून सवयीचे झाले तर पुढेमागे इंटरनेटवर माहिती टाकण्यासाठी ही सवय उपयोगी पडते. पण शासनाचे सुमारे नव्वद टक्के अधिकारी हे बारकावे जाणत नाहीत म्हणून शासनाची मराठी संकेतस्थळे नीट उघडत नाहीत.

नवीन फॅशन प्रमाणे शासनांतील अधिकारी व कर्मचारी यांनी हा सोपा इन्स्क्रिप्ट लेआउट शिकून कार्यक्षमता वाढवावी हा आग्रह आता कुणीही धरत नाही. त्याऐवजी आउटसोर्सिंगचा पर्याय निवडणे हे जास्त कार्य़क्षमतेचे लक्षण मानले जाते. त्यांत जास्त पैसा ओतावा लागत असल्याने ते जास्त ग्लॅमरसदेखील दिसते.

पुढील पिढीचे संगणक शिक्षण
पुढील पिढीला संगणक यावा ही शासनाची इच्छा आहे, त्यानुसार शाळांना संगणक देता यावेत असे सरकारचे प्रयत्न चालू आहेत. पण त्यांत मराठी असावे हा आग्रह नाही. खरेतर सरकारने पहिलीपासून इंग्रजी कम्पल्सरी केले, हेतू हा की मुलांना संगणक यावा, इंग्रजी यावे आणि त्यांच्यासाठी श्रीमंतीचे दार खुले व्हावे. श्रीमंती हवी असेल तर मराठी विसरा ही नवी फॅशन आहे. त्यांतच संगणकावर मराठी शिकणे अतिशय सोपे आहे हे माहित नसल्याने शालेय संगणक सिक्षणाच्या धोरणांत मराठीचा कुठे आग्रहच किंवा विचारच नाही. पण सरकारी अकडेवारीनुसार पहिलीपासून पाचवीत जाईपर्य़ंत पन्नास टक्के मुलं गळतात, त्यानी संगणकाचे स्वप्न पहायचेच नाही का? एका प्रयोगांत असे दिसते की सेगणकावर मुलांना आधी मराठी शिकवला तर तो लेआउट सोपा असल्याने त्यावर बोटांना सवय झाली की इंग्रजी शिकणे सोपे जाते. पण ते असो. मुद्दा हा की शालेय संगणक धोरणामधे मराठीचा विचार शून्य झालेला आहे.

आपल्याला आग्रह धरता येईल की शासनात आलेल्या सर्वांना इन्स्क्रिप्ट लेआउट शिकणे आवश्यक ठरवावे कारण तरच त्यांना ती दृष्टी येऊ शकेल. तसेच हाही आग्रह धरावा लागेल की शाळेतील मुलीमुलांना इन्स्क्रिप्ट लेआउटवर मराठी शिकवावे.

इंग्रजीऐवजी स्वतःची मातृभाषा वापरल्याने प्रगती होते का याच्या उत्त्तरासाठी चीनची ही आकडेवारी पहा --
2004 साक्षरता इंग्रजी-साक्षरता संगणक-साक्षरता
भारत 52 25 09
चीन 88 11 53
त्यांची संगणक-साक्षरता इंग्रजीसाठी अडून राहिली नाही.
इकडेही आता काकोडकर, नारळीकर, माशेलकर यांसारखे वैज्ञानिक सांगू लागलेत की मराठीतून शिक्षण द्या. पण ते सोपे आहे हेही सर्वांना सांगायला हवे.

मराठी एनेबलिंग
मात्र कांही छोट्या अडचणी आहेत, ज्या सोडवायला छोट्या छोट्या उपाययोजना कराव्या लागते.
१) सर्व संगणकांतील ऑपरेटिंग सिस्टमला मराठी चालेलच अशी गॅरंटी दुर्दैवाने अजूनही शासनाने निर्माण केलेली नाही.
सबब, जुने संगणक असतील तर सीडॅकच्या साइटवरून आयलीप हे सॉफ्टवेअर फ्री डाउनलोड करून घ्यायचे व त्यावरून इन्स्क्रिप्ट पद्धतीने मराठी टायपिंग शिकायचे आणि करायचे. कालांतराने एका वेगळ्या सॉफ्टवेअर वापरून हे सर्व युनीकोडमधे बदलून घेता येईल.
२)महाराष्ट्रांत विकल्या जाणा-या सर्व संगणकांतील ऑपरेटिंग सिस्टमवर मराठीची सोय असलीच पाहिजे हा आग्रह शासनाकडे, विक्रेत्यांकडे, ग्राहक-पंचायतींकडे धरता येईल कारण तशी सोय सर्व नव्या संगणकांमधे असतेच फक्त आपण जागरूक नसल्याने ती आपल्याला दिली जात नाही, त्यासाठी कोणालाही वेगळा काही खर्त येत नाही.
३) सीडॅककडे सुंदर सुंदर वळणांचे शंभरएक फ़ॉण्ट असूनही "देणार नाही, जा," या तत्वावर ते सुनीकोड कम्प्लायंट करण्यास नकार आहे, ते होण्यासाठी प्रयत्न करावे लागतील.
४) युनीकोडमुळे जगभर वाचता येऊ शकेल असा युनीकोड कम्प्लायंट एक फॉण्ट मंगल सध्या उपलब्ध आहे पण मुळांतच भारतीय लिप्यांची इंटरचेंजेबिलिटी व त्याचे फायदे युनीकोडमधे आग्रह न धरल्यामुळे आपण घालवून बसलो आहोत, तR परत मिळवण्याचा आग्रह धरावा लागेल व हे काम छोटेसे नसून आता कदाचित डिप्लोमॅटिक पातळीवर उचलावे लागेल, ते झाले तर सरकारच्या इच्छाशक्तीचा तो एक मापदंड ठरेल.

मराठी साहित्यकार कुठे आहेत?
एका माहिती पत्रावरून असे दिसून येते की सर्व भारतीय भाषा मिळून इंटरनेटवर टाकलेल्या पानांची संख्या एक कोटीच्याही खाली आहे - त्याचवेळी इंग्रजी भाषेत मात्र इंटरनेट वर उपलब्ध असलेल्या पानांची संख्या पद्म, महापद्म (इंग्लिश भाषेत सांगायचे तर ट्रिलियन्स ऑफ पेजेस) एवढी आहे.
तेंव्हा भारतीय लेखकांनी थोड्याशा प्रयत्नाने मराठी लिपिचे टायपिंग शिकून महाजालावर (का याला इन्द्रजाल म्हणू या कारण हे ही किती मायावी !) धडाधड मराठी वाङ्.‌मय उपलब्ध करून देण्याने आपल्या साहित्य संस्कृतीचे चांगले जतन होऊ शकेल.
मात्र सध्या असा जोरदार प्रचार चालू आहे की लेखकहो, तुम्ही मराठी लिपीला फाटा द्या. त्या लिपीत टंकन करण्याचा आग्रह सोडा, आम्ही तुम्हांला अशी जादू शिकवतो की तुम्ही रोमन लिपीत टंकन करायचे व संगणक ते मराठीत उमटवेल, अशा रितीने भारतीय लिप्यांची गरज संपेल. हा फोनेटिक पद्धतीचा ट्रॅप कांही वर्षांवासून चालू आहे, याबाबतही वेळेवरच जागं व्हायला हवं, विशेषतः इन्स्क्रिप्ट सोपे आहे म्हणून.
मराठी भाषा कुठे आहे?
जगभरांत मराठी किती बोलली जाते? एका आकडेवारीनुसार जगांत बोलल्या जाणा-या भाषा किती लोक बोलतात ती लोकसंख्या मोजली तर चीनी व इंग्रजीछ्या खालोखाल हिंदीचा नंबर तिसरा, बेगालीचा सातवा आणि मराठीचा तेरावा पण सर्व भारतीय भाषा एकत्र मोजल्या तर त्याचा नंबर पहिला लागतो. हे जेवढे अभिमानाचे आहे तेवढेच भाषा टिकवण्याची जबाबदारी उचला असा संदेशही देत आहे. आज संगणक सर्वव्यापी झाला आहे. त्याच्या प्रवासाचा आढावा घेतांना या जबाबदारीची जाणीव अंतर्मुख करणारी आहे.
शासनाने महाराष्ट्राचे सुवर्ण-जयंती वर्ष साजरे करण्यासाठी जो कार्य़क्रम केला आहे त्यांतही ंसगणक-विकासांत मराठी असावे यासाठी कोणताही कार्यक्रम सुचवलेला नाही.
उद्या कांय़
पुढील पन्नास लर्षांत संगणक संस्कृती किती रुजेल, याचे उत्तर आहे की मोठ्या प्रमाणावर रुजेल. शासनांत स्टाफचे संगणक शिक्षण बहुधा होणार नाही पण आउटसोर्सिंगमुळे शासनाची खूप कामे बाहेर, ज्यांना संगणक हाताळता येतात अशा संश्थांना दिली जातील. त्याने फायदा होईल की रिलायन्स वीजेप्रमाणे न परवडा-या दरांत शासनाची कामे होतील हे आजच सांगणे कठिण आहे. तसेच संगणकाचा वापर झपाट्याने वाढेल यांत शंका नाही. पण त्यांतून दोन गोष्यी बहुधा बाहेर टाकल्या जातील, एक मराठी आणि दुसरे गरीब लोक. ते होऊ नये असे वाटत असेल तर सतत आत्मपरीक्षण, आढावा, जागृती असे कांही केले तरच पुढील काळांत मराठी संस्कृती पुढे नेण्यांत संगणकाचा हातभार लागून मराठीचे जतन होऊ शकेल.
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