प्र.1 क्या हिंदी भी उतनी ही सक्षमता से संगणक पर लिखी जा सकती हैं, जितनी अंग्रेजी ?
उत्तर- जी हां।
प्रश्न2 -फिर यह क्यों नही लिखी जा रही?
उत्तर- क्यों की इसे सैद्धानिक रुपमें समझा गया । पर व्यावहारिकता में अभी भी कई बातें ढीली पडी हुई हैं । हर बार हम अस्सी नब्बे प्रतिशत तैरकर डूबते हैं और देशका पैसा भी डुबोते हैं परन्तु शतप्रतिशत काम पूरा नहीं कर पाते। तो आईये इस बार प्रण करें कि इस कामकी बारीकियाँ जानकर इसका प्रचार करेंगे।
प्रश्न 3- क्या हम इंटरनेट पर भी हिंदीका प्रयोग कर सकते हैं? कैसे ?
उत्तर- इंटरनेट पर हिंदी लेखन के तीन तरीके हैं , और हरेक की अपनी अपनी कमजोरियाँ हैं।
(क) pdf पध्दती - हिंदी में जो भी टंकित किया गया हैं उसे चित्रवत बनाकर संगणक के माध्यम से इंटरनेट पर डाला जाता हैं।
कमजोरियाँ - चित्रवत है ,इसलिये किसी भी बदलाव या अंशात्मक उपयोग की ( utilising parts) अनुमति नही है।
इंटरनेट पर लेबलिंग वाली सुविधा उपलब्ध नही हैं - जो भी लेबल लगेगा वह किसी विशेष परिच्छेद के लिये नही वरन पूरी फाईल के लिये लगेगा अतः यह कार्य इतना बोझील बनेगा (अर्थात फाइल का आकार बडा बना रहेगा ) कि इस लेबलिंग को सर्च इंजिन स्वीकार नही करेगा ।
ऐसे लेखन को सर्च इंजिन से खोजा नही जा सकता । अतएव इंटरनेट के दो प्रमुख लाभों मे सें एक ही लाभ मिलेगा ( जिसे URL मालूम है वह पढ सकता हैं ) लेकिन दूसरा लाभ -( बिना URL के सर्च कर पाना ) नही मिलेगा
(ख) दूसरी पद्धती - बरहा या रोमन फोनेटिक पद्धतिसे टंकन करना।
यह सुविधा elite rich English – savvy लोगों के लिये हैं । वह संगणक का उपयोग रोमन लिपीके माध्यम से करते हैं। अतः इंग्रजी की - बोर्ड उनकी प्रॅक्टीस में रहता हैं।
उन्हें दुबारा कुछ नया सीखे बगैर यह सुविधा है कि वे बरहा या गूगल फोनेटिक जैसे सॉफ्टवेअरका उपयोग करें। इससे वे हिंदी भाषा का स्पेलिंग अंग्रेजी में सोचकर अंग्रेजी की-बोर्ड की सहायता से लिखते चलेंगें - और संगणक के पडदे पर उनका दृश्य रुप देवनागरी लिपी में दिखाई पडेगा।
कमजोरियाँ ( ख-1) इस पद्धतिको मैं फोनेटिक ट्रॅप कहती हूँ । यह एक मकड जाल है, हमें फाँसकर हमारी लिपी-स्मृती को धुंधला करने का । यदि आज आप hindi लिखना जानते हैं तो कल आपसे पूछा जायगा कि फिर आप दृश्य रुपमे भी hindi देखना पसंद करिये इसको “ हिंदी” लिपीमें दिखाना अनिर्वाय तो नही है ना? यदि हम इस विधीसे राम लिखेंगे तो हम र को भूलते चलेंगे क्योंकि हमारे मनःपटल पर R ही दिखेगा।
(ख-2) हमारे देश के अस्सी प्रतिशत बच्चे आठवीं कक्षा सें आगे पढाई नही करने और अंग्रजी उनके लिये हौव्वा है । फोनेटिक ट्रॅप से हम मानों उनसे कह रहे हैं - दूर हट बे - यदि तुझे अंग्रेजी स्पेलिंग करना नही आता तो यह वैभवशाली संगणक-दुनियाँ तुम्हारे लिये नही है। फिर ऐसे बेचारों के लिये सरकार नीती बनाती है कि कक्षा 1 से ही अंग्रेजी शिक्षा अनिवार्य हो जो कि हमारी संस्कृति के लिये भ्रामक है।
इस नीति के उलटा चित्र यह आंकडे दिखाएँगे इन्हें गौर से देखें-
सन2002
Litezaey %
English litzaey %
Computer litezaey %
भारत
56%
25%
9%
चीन
88%
16%
57%
तो क्या हम चीनके उदाहरण से हम कुछ सीखेंगे?
(ग) तीसरी पध्दति- इनस्किप्ट पध्दति से टंकन करना।
इनस्क्रिप्ट पध्दतिसे टंकन करने पर इंटरनेट की सारी सुविधाएँ मिलती हैं - मसलन
editable text
labling
possible to search by search enginners
इनस्क्रिप्ट का फायदा ये है कि इसे सीखने के लिये रोमन स्पेलिंग को सीखना नही पडता । अर्थात्
yeah vidhi seekhane ke liye roman spelling ko seekhana nahi padta.
बल्कि पहली कक्षा में जो कखगघ सीखा , उसी पद्धति से इसका की बोर्ड होने के कारण वे ८०% प्रतिशित बच्चे भी हिंदी टंकन को इस विधी से सीखकर रोजी कमा सकते हैं
प्रश्न- लेकिन हिंदी टंकन की जो पद्धति टाईपरायटरों के जमाने से चली आ रही हैं , उसी को क्यों नही उपयोग में लाया जा सकता?
उत्तर- जानने लायक तीन बातें
(१)उस पद्धतिसे लिखा गया हिंदी लेखन इंटरनेट पर जंक दिखेगा।
(२) इनस्क्रिप्ट की बोर्ड की पद्धति टाइपरायटर पद्धतिसे सौ गुनी सरल है। इसे सीखने में १० दिन और उसे सीखने में १ वर्ष चाहिये।
(३) जब कार्यालयोंमें संगणक नये नये आये (१९८० के आसपास )तब टाइपरायटर पद्धतिका उपयोग करने वाले हजारो- लाखो क्लार्क थे , और इनस्क्रिप्ट का उपयोग नया नया था। उन लाखों की सुविधा के लिये संगणक पर भी ऐसा सॉफ्टवेअर लगाना जरुरी था जो टाइपरायटर पद्धति की की-बोर्ड से चले।
आज तीस वर्षों के बाद हमारे human resourses का तत्काल लाभ उठाने के लिये औऱ डिजीटल इंडिया स्कीमको तत्काल जन-जन तक पहुँचाने के लिये १० दिनमें सीखा जानेवाला इनस्क्रिप्ट ही उपयोगी है।
प्रश्न4- सरकार क्यों चाहेगी इनस्क्रिप्ट- पध्दति को दबाना? इस सॉफ्टवेअर को किसने बनाया? वे क्यों नही सरकार पर सवाल दागते?
उत्तर- सरकार बरहा या गूगल जैसी रोमन लिपी आधारित प्रणाली को बढाने के लिये इनस्क्रिप्ट को दबाना चाहती है । रोमन फोनेटिक पद्धतिके सॉफ्टवेअर की एक करोड सीडी सरकार ने सोनियाजी के हाथों उदघाटन करके मुफ्त बँटवाई जब कि इनस्क्रिप्ट की-बोर्ड के ले-आउट वाले सॉफ्टवेअर की कीमत १५००० से धीमे धीमे घटाकर २००० पर लाई गई है (१९९२ से२००९ के बीच ) और २००९ में इसे बंद ही कर दिया गया। यह सॉफ्टवेअर सरकारी कंपनी - c-DAC ने बनाई थी। उनके बाकी प्रोजेक्टोंमे आ रहे घाटे को छिपाने के लिये इस सॉफ्टवेअर को महँगा किया और फिर वे नही बिक पाई तो धीरे धीरे उसे बंद कर दिया। इस प्रकार देश में भारतीय भाषाओं के संगणक प्रसार को खड्डे में धकेला ।
प्रश्न5- और भविष्य क्या हैं?
अब यदि हम डिजीटल इंडिया के लिये इसे अपनाते हैं तो हिन्दी के साथ साथ सारी प्रादेशिक भाषाओंमें भी हम तत्काल पहुँच सकते हैं क्योंकि यह एक ही की-बोर्ड सारी भारतीय भाषाओं के लिये समान रूपसे लागू है।
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