सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

हमारी वर्णमाला 1905 जस्टिस शारदा चरण मित्र


हमारे मित्र प्रियंकर पालीवाल बताते हैं कि जस्टिस शारदा चरण मित्र ने देश की स्वाधीनता और एकीकरण हेतु 1905 में एक लिपि विस्तार परिषद की स्थापना की थी . 1907 में संस्था की पत्रिका 'देवनागर' के द्वारा एक लिपि विस्तार की अलख जगाई थी ।
और मैं भी यही कहना चाहती हूँ कि ये अलग अलग वर्णाकृतियाँ (यथा -- बंगाली, कानडी, गुजराती ) ये कोई अबूझ पहेलियाँ थोडे ही हैंं, ये हैं बस भिन्न भिन्न कॅलीग्राफ्री, जो हमारी वर्णमाला के लिये अलग अलग गहनोंकी तरह हैं। हमें बस इतना ही करना है कि इन्हें ""एक क्लिकसे ही "" एक वर्णाकृतिसे दूसरीमें बदलनेका तंत्रज्ञान विकसित करना होगा (जो श्रीश बैंजल या अनुनाद सिंह जैसे कुछ लोग प्रयास कर भी रहे हैं) । फिर भाषाएँ भी धडल्लेसे पढी जा सकेंगी और भाषाई दूरियाँ मिटती चलेंगी ।(क्या कोई और भी इस सपनेको पाल रहा है ??) । वैसे पालीवालजी, उस लिपि विस्तार परिषदका भी थोडा इतिहास लिख डालिये। हमें भी प्रोत्साहन मिलेगा कि हम कितने ऊँचे लोगोंके कंधेपर खडे हैं और कितनी दूरतक देख सकते हैं।

  • Vasistha Vishal Sharma · 3 mutual friends
    namaste ji lat lakar wala path kab prasarit hone wala h
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  • लीना मेहेंदळे Vasistha Vishal Sharma 60 वें तक किसी दिन
    10 hrs · Like · 1
  • अमित कुमार नेमा वस्तुतः जितने समय में एक विदेशी भाषा सीख पाते हैं, उतने समय में 2-3 भारतीय भाषायें सीखी जा सकती हैं । इस तरह के प्रयास इसे और भी सरल बना देंगे ।
    10 hrs · Unlike · 1
  • Vasistha Vishal Sharma · 3 mutual friends
    जी बडी कृपा
    10 hrs · Like
  • Swami Sachidanand Maharaj · 3 mutual friends
    agar sabhi kshetriya bhashayen devnagari lipi me likhe to kya bura hai ?
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  • Swami Sachidanand Maharaj · 3 mutual friends
    Samasya yah hai ki log hindi nahin sikhna chahte
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  • लीना मेहेंदळे अमित कुमार नेमा ""वस्तुतः जितने समय में एक विदेशी भाषा सीख पाते हैं, उतने समय में 2-3 भारतीय भाषायें सीखी जा सकती हैं । "" -- विनोबा कथन --ये मेहनत कबसे चल रही है और कितने हाश बँटा रहे हैं कौन गिन सकता है।
    10 hrs · Like · 2
  • अमित कुमार नेमा बहुत दिनों से इस विषयक एक लेख लिखने का विचार है, अब आपकी प्रेरणा से वह शीघ्र ही लिखूँगा ।
    10 hrs · Like
  • लीलाधर शर्मा सत्य बात है मैं जब 1995 मे पुरी ओडिसा में था मै सबसे पूछता कि आप मुझे उड़िया पढना कितने दिनो मे सिखा सकते हो प्राय सब का उत्तर 6 माह पर एक पण्डितजी ने कहा 2 दिन और सिखाया भी 15 दिनो मे मैं उड़िया समाचार पत्र पढने लगा था आज अभ्यास नही होने से पूरी तरह नही पर कुछ अभी भी पढ लेता हूँ।
    9 hrs · Unlike · 2
  • Lalit Kumar Sharma Great to know
    9 hrs · Like
  • लीलाधर शर्मा मैं पहले संस्कृत और हिन्दी रोमन में ही लिखता था लीना मेहेंदळे जी व अनन्त पंढरीनाथ जी की प्रेरणा से आज देवनागरी में लिख रहा हूँ।
    8 hrs · Unlike · 1
  • Arpita Sharma बहुत उम्दा जानकारी है मेम।यह सुविचार है। लिपि के अलावा भाषा पर भी सोचा जा सकता है, मडारिन की तरह।
    2 hrs · Unlike · 2
  • Satish Raj Pushkarna · Friends with Subhash Sharma
    Intzar ka bhi apna Mazda hai.
  • लीना मेहेंदळे अमित कुमार नेमा -- आज करे सो अब्ब ।क्योंकि लडाई बहुत लम्बी है।
  • लीना मेहेंदळे Swami Sachidanand Maharaj agar sabhi kshetriya bhashayen devnagari lipi me likhe to kya bura hai ?-- क्योंकि हम परिश्रमपूर्वक बनाई गई इन सुंदर व्रणलियोंसे हाथ धो बैठेंगे और इनका ज्ञानभंडार भी नही पढ पायेंगे। हम उन्हें हटानेका विचार नही करें -- केवल यह सुविधा हो कि जब चाहें एकसे दूसरीमें कनवर्ट करके पढ सकें। चीनी-जपानी-कोरियाई देशोंने यही किया क्योंकि उनकी भी वर्णमाला एक पर वर्णलिपियाँ अलग अलग थीं।


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नौकरी हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं में कौन सा हिन्दी लेआउट मान्य है, इन्स्क्रिप्ट या रेमिंग्टन।
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किसी जमानेमें रेमिंग्टन ही मान्य था -- एक तो कई लोग टाइपराइटर पर सीखकर आते थे, दूसरा परीक्षकोंका कन्फ्यूजन ये था कि संगणकपर परीक्षार्थी बॅकस्पेस दबाकर भूलसुधार कर लेंगे तो क्या होगा । मैंने मराठी-विकास-सचिव के नाते 2007 में तीन बदलाव किये -- परीक्षार्थी को संगणक/टाइपराइटर  मुहैया कराया --जो पहले उन्हें लाना पडता था, परीक्षामें दोनों लेआउटोंका ऑप्शन रखा। परीक्षकोंको समझाया कि संगणकवालोंकी जाँच स्पीडके आधारपर होगी क्योंकि जिसे बारबार गलती-सुधार-हेतु बॅकस्पेस का प्रयोग करना पडे  वह स्पीडमें मात खायेगा, घोषणा कर दी कि अगले 1 वर्ष पश्चात् टाइपराइटरका ऑप्शन रद्द होगा। बाद में 2011 में मैसूर स्थित सरकारी संस्थान ने, 2012 में महाराष्ट्र के आयटी सचिवने और अब सुना है कि 2013 से दिल्ली स्थित  विभागने यही नीति अपनाई है।
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जो जानते हैं भारतीय भाषाओंकी समृद्धि और गौरव, जो उससे लाभ उठा रहे हैं और जो उन्हें बढाने में अपना योगदान कर रहे हैं, इन तीनों श्रेणियों में से अत्यल्प संख्यामें लोग इस बातको समझ रहे हैं कि भाषाओंकी नींव तो कुतरी जा रही है, खोखली हो रही है। आगेके जमानेमें कम्प्यूटर छाया रहेगा और अंग्रेजीभी। दोनोंसे बैर नही कर सकते। केवल इतना कर सकते हैं कि भारतीय लिपियोंकोभी कम्प्यूटर पर उतनीही सरलता और बहुलतासे प्रस्थापित करो, जितनी सरलता व बहुलतासे अंग्रेजी प्रस्थापित है। आप भारतके किसीभी कोनेसे हों, कोई भी भाषा बोलते हों, कोई भी लिपी लिखते हों, नींव सबकी खोखली हो रही है और बचनेका तरीका सबके लिये एक जैसा है। अतः सारी भाषाओंके पण्डित एकत्र हों, सं गच्छध्वं, सं वदध्वं, सं वो मनांसि जानताम् जैसे श्रुति-आदेश का पालन करें और एकात्मभावसे इस काम में लग जायें -- तभी बचेगी नींव और तभी टिकेगा भाषा-वैभव।


  • Priyankar Paliwal and 2 others like this.
  • Priyankar Paliwal पूरी तरह सहमत !
  • Ajmer Singh · Friends with Priyankar Paliwal
    कुछ हद तक सहमत हूँ..... भाषाओं का रूप बदलता रहता है ... इन्हे हम एक ही रूप /स्थिति पर बाँध कर नहीं रख सकते .... बाँध कर रखेंगे तो इनका भी वही हाल होगा जो आज संस्कृत का है ..... केवल ग्रंथों में सिमट कर रह जाएँगी ,आधुनिक भारतीय भाषाएं ........
    1 hr · Unlike · 1
  • लीना मेहेंदळे Ajmer Singh मैं फिलहाल एक ही मुद्दे पर हूँ कि संगणकपर सारी भारतीय लिपियाँ औऱ भाषाएँ बहुलतासे हों, वरना तंत्रज्ञानसे न जुड पानेके कारण उनका ह्रास और भी तेजीसे होगा। जहाँ तक उनके साहित्यिक रूपका प्रश्न है, वह बुजुर्ग साहित्यकारोंकी सोचका विषय है।
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