हिंदी बरकरार रखने के लिये
१९९७ मे कभी
१९९७ मे कभी
बिना तंत्रज्ञान विकास के कोई देश, समाज या भाषा आगे नहीं आ सकते। हिंदी बरकरार रखने के लिये भी संगणक का माध्यम अत्यावश्यक है।
सरकारी कार्यालयों में नई पीढ़ी पूर्णतया संगणक प्रशिक्षित है और संगणक सुविधाओं का लाभ भी ले रही है। लेकिन केवल अंग्रेजी के माध्यम से। हिंदी माध्यम से अत्यल्प जुड़ाव है।
कारण यह कि संगणक सुविधाएँ हिंदी में एक प्रतिशत भी विकसित नही हैं।
इसका कारण यह कि हिंदी में संगणक सुविधा का विकास केवल सॉफ्टवेयर तक सामित रहा हैं जब कि पूरे विकास के लिये सॉफ्टवेयर को ऑपरेटिंग सिस्टम (ओ. एस्.) के साथ इंटिग्रेट करना आवश्यक होता है।
हिंदी संगणक विकास करने वालों में में सर्वप्रमुख है सीडैक जो सरकारी संस्था होने के कारण उसे संसाधनों की कोई कमी नहीं हैं।
सीडैक ने कई अच्छे संगणक सॉफ्टवेयर्स विकसित किये हैं लेकिन वे कस्टमर की आकांक्षा पर पचास प्रतिशत से अधिक खरे नहीं उतरते क्योंकि उन्हें ओएस से इंटिग्रेट नहीं किया गया है। और न ही कस्टमर के प्रश्नों का समाधान ढूँढने का प्रयास हुआ है।
सीडॅक या अन्य विकासक के दावे को कबूलते हुए भारी खर्च पर सरकार ने हिंदी के सॉफ्टवेयर खरीद लिये है लेकिन उनकी उपयोगिता परखने का या बढ़ाने का कोई कार्यक्रम सरकार के पास नहीं है। उदाहरण स्वरुप देखें अनुलग्नक - १।
सीडॅक के सभी सॉफ्टवेयर महंगे बना दिये गये हैं जिससे उनके खरीदार या तो नहीं के बराबर हैं या ऐसे सरकारी कार्यालय हैं जहाँ पैसे का व्यय न तो महत्व रखता है ना कोई इस पर सवाल उठाता है। कदाचित जो सवाल उठाये जाते हैं उन्हें राजभाषा या सीडॅक से कोई उत्तर या समाधान नहीं दिया जाता।
आधे अधूरे उपयोग वाले सॉफ्टवेयर को कार्यालय में लगाकर उनका आग्रह करने से समय का अपव्यय होता है क्योंकि सरकारी काम व टिप्पणियाँ दीर्घकालीन और विभिन्न उपयोगों के लिये होती हैं। ऐसे में हिंदी सॉफ्टवेयर के साथ किये गए काम को बार बार करना पड़ता है।
उपाय
यह जाँचा जाए कि जिन सरकारी कार्यालयों में हिंदी सॉफ्टवेयर लगे उनमें से कितनों के लिये कंज्यूमर रिस्पान्स माँगा गया या उनकी दिक्कतों को समझा गया और उसमें से कितनों को सुधारा गया।
पहले बायोस और ओएस दोनों को थ््रदृड्डत्ढन््र किये बगैर ओएस को विकसित करना संभव नहीं था एत्दृद्म और ग््रच् त्दद्यड्ढढ़द्धठ्ठथ् थे। वैसी हालत में एत्दृद्म के बगैर हिंदी ग््रच् बनाना बेमानी था और एत्दृद्म थ््रदृड्डत्ढत्ड़ठ्ठद्यत्दृद में कई व्यवहारिक दिक्कतें थीं। अब एत्दृद्म को संस्कारित किये बगैर को ग््रच् बदला जा सकता है।
लेकिन वर्तमान में ग््रच् ड्डड्ढध्ड्ढथ्दृद्रथ््रड्ढदद्य बड़ी द्मड़ठ्ठथ्ड्ढ की प्रक्रिया बन गई है। अतएव भारत में सरकारी कार्यालयों के अनुकूल दो ग््रच् हैं - ग्च् तथा ख््रत्दद्वन्.सीडैक अभी तक ग्च् पर आधारित है। इसमें थ्त्दद्वन् आधारित करने पर फायदेमंद रहेगा क्योंकि -
(ठ्ठ) ख््रत्दद्वन् एक दृद्रड्ढद द्मन््रद्मद्यड्ढथ््र हैं। इसमें होने वाले हर बदलाव को तथा हर त्थ््रद्रद्धदृध्ड्ढथ््रड्ढदद्य को घ्द्वडथ्त्ड़ क़्दृथ््रठ्ठत्द में रखा जाता है ताकि उपभोक्ता इसमें अपनी आवश्यकतानुसार अगला ड्डड्ढध्ड्ढथ्दृद्रथ््रड्ढदद्य
कर सके। ऐसा नया ड्डड्ढध्ड्ढथ्दृद्रथ््रड्ढदद्य भी द्रद्वडथ्त्ड़ ड्डदृथ््रठ्ठत्द में रखा जाता है। इस प्रकार उपभोक्ताओं के परामर्श और द्रठ्ठद्धद्यत्ड़त्द्रठ्ठद्यत्दृद से ही ख््रत्दद्वन् द्मन््रद्मद्यड्ढथ््र विकसित हुई है। सीडॅक ने अपनी त्दध्ड्ढद्मद्यथ््रड्ढदद्य का हवाला देकर ख््रत्दद्वन् को इसलिये ठुकराया है कि घ्द्वडथ्त्ड़ क़्दृथ््रठ्ठत्द में उनके सॉफ्टवेयर ढद्धड्ढड्ढ द्यदृ ठ्ठथ्थ् हो जायेंगे और उनका त्दड़दृथ््रड्ढ ढ़ड्ढदड्ढद्धठ्ठद्यत्दृद रूक जायेगा।
सरकार को यह नीति तय करनी चाहिए कि चूँकि सीडैक एक सरकारी संस्था है अतः त्दड़दृथ््रड्ढ ढ़ड्ढदड्ढद्धठ्ठद्यत्दृद की परवाह किये बगैर उनके द्मदृढद्यध््रठ्ठद्धड्ढ को द्रद्वडथ्त्ड़ ड्डदृथ््रठ्ठत्द में डाला जाय।
वर्तमान में संगणक शिक्षा के बिना शिक्षा भी अधूरी है। ऐसी हालत में चीन और भारत के ये आकड़े क्या कहते हैं -
चीन भारत
थ्त्द्यड्ढद्धठ्ठड़न््र ७५ऽ ६५ऽ
अंग्रेजी जानने वाले १०ऽ ४०ऽ
संगणक पर काम करने वाले ७०ऽ २५ऽ
इन आकड़ों में शायद थोड़ा परिवर्तन हो लेकिन ये द्यद्धड्ढदड्ड दर्शाते हैं और बताते हैं' कि भारत में संगणक को अग्रेंजी आधारित रखने के कारण एक ओर शिक्षित व्यक्ति भी अग्रेंजी न जाने तो संगणक ज्ञान से वंचित रहेगा। दूसरी ओर जितना ही वह संगणक के करीब जायगा उतना ही उसे हिंदी या अपनी मातृभाषा से दूर रहना पड़ेगा। लेकिन चीन में संगणक चीनी भाषा पर आधरित हैं जिस कारण से अंग्रेजी न जानने पर भी उनकी भावी पीढ़ी आधुनिक ज्ञान को अपनी मातृभाषा के माध्यम से पा सकती हैं। यही कारण है कि चीन की उत्पादकता भारत की अपेक्षा कहीं अधिक है।
सीडॅक द्वारा विकसित कतिपय सॉफ्टवेयरों की चर्चा यहाँ औचित्यपूर्ण हैं।
पहला है थ्ड्ढठ्ठद्र दृढढत्ड़ड्ढ - खासकर उसमें विकसित त्दद्मड़द्धत्द्रद्य त्त्ड्ढन््रडदृठ्ठद्धड्ड :-
पूरी तरह भारतीय वर्णमाला पर आधारित और सभी भारतीय लिपियों में तथा वर्णाक्षरों की एकात्मता
बनाये रखने वाला यह त्त्ड्ढन््र डदृठ्ठद्धड्ड निःसंदेह भारतीय भाषाओं लिये बने तमाम की बोर्डों से अधिक सहज सरल और ''बीस मिनट में फटाफट' सीखने के लिये सर्वोत्तम है। सभी भारतीय भाषाओं के लिये एक वर्णाक्षर एक ही कुंजी का द्रद्धत्दड़त्द्रथ्ड्ढ इसमें है और वह कुंजियाँ भी ऐसी ठ्ठद्धद्धठ्ठदढ़ड्ढड्ड की हैं जिन्हें समझना बहुत ही आसान है। लेकिन आज त्दद्मड़द्धत्द्रद्य की बोर्ड और लीप प्रणाली की उपयोगिता केवल दस प्रतिशत है । आज इसकी कीमत है दस से पंद्रह हजार रूपये और कितनी गैरसरकारी संस्थाएँ इसे खरीदती हैं यह जानकारी ड्ढन््रड्ढ दृद्रड्ढदड्ढद्ध होगी।
इसमें स्थिति में सुधार के उपाय -
१.ठ्ठ) कीमत को दस हजार से घटाकर मुफ्त या पांच सौ तक लाया जाय।
१.ड) थ्ड्ढठ्ठद्र दृढढत्ड़ड्ढ के द्मठ्ठथ्ड्ढ ढत्ढ़द्वद्धड्ढद्म की जाँच की जाय ताकि दुनियां को पता चले कि वह कितना कम बिका है।
१.ड़) सरकार सीडॅक को एक मुश्त ड्डड्ढध्ड्ढथ्दृद्रथ््रड्ढदद्य ड़ण्ठ्ठदढ़ड्ढ देकर लीप ऑफिस प्रणाली खरीद ले और मुफ्त बांटे। इसके लिये किसी दृत्थ् ड़दृथ््रद्रठ्ठदन््र को भी कहा जा सकता है जिनका द्रद्धदृढत्द्य १०००० करोड़ रूपये के द्धठ्ठदढ़ड्ढ में होता है।
यह सब करने पर उपयोगिता होगी पचास प्रतिशत।
इसके बजाय यदि इसे ख््रत्थ््रत्न् सिस्टम में घ्द्वडथ्त्ड़ क़्दृथ््रठ्ठत्द में डाला जाय चो इसकी उपयोगिता होगी सौ प्रतिशत। सीडॅक द्वारा विकसित पॅकेज लीला जो अंग्रेजी से भारतीय भाषाओं में अनुवाद के लिये बना है। इसकी उपयोगिता दो तरह से जांचनी होगी -
ऋ.१ भारतीय भाषा से भारतीय भाषा के अनुवाद के लिये उपयोगिता ५ऽ
ऋ.२ भारतीय भाषा से अंग्रेजी अनुवाद के लिये १०ऽ
ए-१ अंग्रेजी से भारतीय भाषा में अनुवाद के लिए ५०ऽ
यहाँ केवल ए-१ की चर्चा प्रस्तुत है। सीडैक की ओर से कहा जाता है कि लीला के द्वारा शब्द से शब्द का नहीं बल्कि थ्ड्ढन्त्ड़ठ्ठथ् द्यद्धड्ढड्ढ से थ्ड्ढन्त्ड़ठ्ठथ् द्यद्धड्ढड्ढ अर्थात् वाक्यांश से वाक्यांश का अनुवाद किया जाता है।
सबसे पहले तो सीडैक को बधाई देनी पडेगी कि जब संगणक की दुनियाँ में भारतीय भाषाओं के लिए अनुवाद जैसा कुछ भी नहीं था, तब उन्होंने यह पॅकेज विकसित किया। कम से कम पचास प्रतिशत काम तो इससे हो ही जायेंगे। खासकर आज जब अंग्रेजी में ऐसा पॅकेज आ गया है जिसकी मार्फत हाथ से लिखी गई अंग्रेजी इबारत को पढ़ और समझ कर संगणक उसे टाईप-रिटन अंग्रेजी में ड़दृदध्ड्ढद्धद्य कर रहा है। ऐसी अंग्रेजी इबारत से भारतीय भाषाओं में अनुवाद की संभावना के कारण बँकों को और सरकारी दफ्तरों की अंग्रेजी टिप्पणियों को बाद में हिंदी में उतार लेने की सुविधा उत्पन्न हो गई है। फिर भी उपयोगिता पचास प्रतिशत से अधिक नही है।
जब कि इसे आसानी से बढाया जा सकता है। तरीका फिर वही है। थ्ड्ढन्त्ड़ठ्ठथ् द्यद्धड्ढड्ढ द्यदृ थ्ड्ढन्त्ड़ठ्ठथ् द्यद्धड्ढड्ढ के अनुवाद के लिये जो भी ड़दृड्डत्दढ़ सीडैक ने की है असे यदि द्रद्वडथ्त्ड़ ड्डदृथ््रठ्ठत्द में डाला जाये और वह थ्त्दद्वन् ग््रच् में इस्तेमाल होने लगे तो जो भी व्यक्ति अलग तरह से अनुवाद करना चाहता हो वह इस ड़दृड्डत्दढ़ की मदद से ऐसा कर सकेगा। इस ड़दृड्डत्दढ़ से भारतीय भाषाएँ ठ्ठड़ड़ड्ढद्मद्मत्डथ्ड्ढ होंगी अतः कोई अन्य बुद्धिमान और संगणक-प्रवीण व्यक्ति भारतीय भाषा से भारतीय भाषा तक या भारतीय भाषा से सीधे जापानी, चीनी, फ्रांसिसी, जर्मन इत्यादि भाषाओं तक पहुँच सकेगा। इस प्रकार दुनियाँ के अन्य देशों तक पहुँचने के लिए त्दद्यड्ढद्धथ््रड्ढड्डत्ठ्ठद्धन््र थ्ठ्ठदढ़द्वठ्ठढ़ड्ढ के रूप में अंग्रेजी की आवश्यकता नही रहेगी। इससे विश्र्व बाजार में और विश्र्व राजनीति में भी भारत की साख बढेगी।
सारांश में चार मुद्दों पर सरकार को ठोस नीति और कार्यक्रम हाथ में लेने पडेंगे -
१) सीडैक द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर मुफ्त उपलब्ध कराये जायें।
२)संगणक बेचने वाली कंपनियों पर निर्बंध हो कि वे भारतीय भाषा सॉफ्टवेयर के बगैर संगणक न बेचें।
३) सीडैक सहित पहले भी जितने डेव्हलपर्स ने हिंदी सॉफ्टवेयर बनाये और बेचे हैं और जो आज भी लोगों के संगणकों में बिना त्थ््रद्रद्धदृध्ड्ढथ््रड्ढदद्य की संभावना के पडे हुए हैं, उनकी ड़दृड्डत्दढ़ को दृद्रड्ढद करके द्रद्वडथ्त्ड़ ड्डदृथ््रठ्ठत्द में डाला जाये ताकि लोग थ्त्दद्वन् ग््रच् द्रथ्ठ्ठद्यढदृद्धथ््र के माध्यम से उनका उपयोग कर सकें। और एक तरह के हिंदी सॉफ्टवेयर में किया गया काम दूसरे सॉफ्टवेयर में भी काम आ सके। इस प्रकार पिठले दस - बीस वर्षों से लोगों का जमा किया ड्डठ्ठद्यठ्ठ बचाया जा सकता है।
४)राजभाषा विभाग सभी विभागों में हिंदी में होनेवाले कामकाज के विषय में संगणक संबंधित कठिनाइयों का ढड्ढड्ढड्ड डठ्ठड़त्त् लेता रहे और उन कठिनाइयों को निरस्त करने का प्रयास करे।
५)अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आज भी देवनागरी वर्णमाला हर संगणक पर उपलब्ध नही है जबकि चायनीज और अरेबिक वर्णमालाएँ उपलब्ध हैं। इसका उत्तर और इलाज पाने के प्रयास हों।
६)ग्च् दृढढत्ड़ड्ढ के (१) कन्ड़ड्ढथ् बनाना (३) घ्दृध््रड्ढद्ध द्रदृत्दद्य जैसे कार्यक्रम, (४) ई मेल और (५) वेब पेज बनाने के लिये सरल कार्यक्रम, (६) ऍक्रोबॅट रीडर जैसे कार्यक्रम के साथ हिंदी का इंटिग्रेशन, (७) ई मेल को डाऊन लोड करने के बाद उससे सीधे भारतीय लिपियों में वर्ड फाईल बनाना च्दृद्धद्यत्दढ़ अनुक्रम भारतीय वर्णमाला के अनुसार ये आठ कार्यक्रम जब तक सरलता से कार्यालयों में संपन्न नही हो पाते तब तक राजभाषा की प्रतिष्ठा के लिये जो भी किया जायेगा वह निष्फल रहेगा। (८) हिंदी में लिपिबद्ध पन्नों को चित्र या त्र्द्रड्ढढ़ ढत्थ्ड्ढ से पढ़कर उससे हिंदी लिपि में वर्ड फाईल बनाना। -------------------------------------------------------
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