शनिवार, 14 नवंबर 2020

जनसंख्या -- संपत्ति या विपत्ति

 

जनसंख्या -- संपत्ति या विपत्ति

जनसंख्या संपत्ति या विपत्ति 

प्रभाग 1 वर्तमान एवं भविष्य 

जमीन बनाम जनसंख्या 

पोषण स्वास्थ्य शिक्षा 

प्रभाग २ राष्ट्रकी संपत्ति क्या होती है और जनसंख्या विपत्ति कब बनती है कौन से गुण तय करते हैं कि जनसंख्या संपत्ति रहेगी या विपत्ति होगी 

प्रभाग 3 प्रांत वार जनसंख्या जनगणना के आंकड़े १९५१, ६१, ७१, ८१, ९१, २००११, 2011, 2021 

प्रभाग ४ उद्योजकता बेरोजगारी  -- कृषि उद्योग एवं सेवाके सेक्टर में रोजगारी की संभावना -- फोर्थ सेक्टर शिक्षा एवं अन्वेषण 5वां सेक्टर लक्ष्य एवं दूरदृष्टि


वर्तमानमें विश्वकी जनसंख्या . अरब है चीनकी जनसंख्या १५० करोड़, भारतकी भी लगभग १५० करोड़ र बाकी पूरे विश्वमें .५ अरब। तीसरे स्थानपर जो देश है अमेरिका, उसकी जनसंख्या लगभग ३५ करोड़, अर्थात चीन व भारतकी तुलनामें एक चौथाईसे कम है

जनसंख्याका विचार अवश्यमेव रूपसे किसी समूह, समाज व राष्ट्रके विचारके साथ जुड़ा होता है जनसंख्या - यह एक बहुवचन-दर्शक शब्द है और बहुत बड़े परिमाणमें व्यक्तियोंको दर्शाता है किसी भी राष्ट्रकी एवं संस्कृतिकी संपत्ति किस प्रकार मापी जाती है या समझी जाती है

संपत्ति शब्दके पर्यायी शब्द हैं - धनका अर्जन, संसाधनोंकी उपलब्धता, श्री, समृद्धि, अभ्युदय, प्रगति, विकास, इत्यादि संपत्ति शब्दका स्मरण करनेपर हमारे मनमें ऐसे शब्द प्रकट होते हैं। परंतु एक दूसरी सूची भी है जिसमें परिश्रम, नियमबद्धता, लगन, निरंतरता, योजना, दूरदृष्टि जैसे शब्द आते हैं और उन्हें हम सहसा संपत्तिके साथ नहीं जोडते ये दूसरी सूचीके शब्द हमारे प्रयत्नोंके साथ जुड़े होते हैं जबकि पहली सूचीके शब्द प्रयासोंके फलितके साथ जुड़े होते हैं यह मनुष्य स्वभाव है कि हम प्रायः केवल फलितकी ओर देखते हैं उसके देदीप्यमान होनेके कारण हम उससे प्रभावित हो जाते हैं अथवा अगर उसमें कोई कमी या अपूर्णता दिखे तो उसकी पूर्णताहेतु मनमें अभिलाषा रखते हैं परंतु उ फलितको पानेहेतु या पूर्ण करनेहेतु जो सतत प्रयास करने पड़ते हैं उसकी अनुभूति अथवा उसका स्मरण हम प्रायः नहीं रखते प्रयत्न हमारे कष्ट करनेके दिनोंके साथ जुड़े होते हैं जबकि संपत्ति हमारे उपभोग करनेके दिनोंके साथ जुड़ी होती है, और यह मानवी स्वभाव है कि उसे कष्टोंका या प्रयासोंका विचार अधिक अच्छा नहीं लगता उपभोगसे मिलने वाले सुखकी ओर उसका चित्त लगा होता है

जबतक हमने प्रयासोंका विचार करना नहीं छोड़ा तभीतक हम भविष्यमें भी प्रयत्नशील रहेंगे और उ प्रयत्नोंसे ही भविष्यकालीन संपत्तिका निर्माण होने वाला है इसलिए प्रयत्नोंका स्मरण हमें सदा ही रखना चाहिए तो प्रश्न यह उठता है कि किसी भी समाज या राष्ट्रके कितने प्रतिशत व्यक्ति प्रयत्नशील होते हैं या प्रयत्नोंका स्मरण रखते हैं किंतु इस प्रश्नके पहले हम एक अन्य प्रश्नकी तरफ चलते हैं कि केवल एक व्यक्तिको विचारकेंद्रमें रखकर हम संपत्तिकी व्याख्या किस प्रकार करेंगे और यदि समष्टिका विचार करना हो तो हम संपत्तिकी व्याख्या किस प्रकार करेंगे। क्या इन दोनों व्याख्याओंमें अन्तर होगा।


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